09

कनिका की तकलीफ

Pathani House,,

Guest Room,,,

असुर इस वक्त कनिका का हाथ पकड़कर उसके ऊपर झुका हुआ था और इस वक्त अपनी डेविल नज़रों से उसे देख रहा था। अभी-अभी उसने चुटकी बजाई थी, जिसे सुनकर डॉक्टर असुर की तरफ देखने लगे थे। वहीं कनिका का दिल इस वक्त जोर-जोर से धड़क रहा था क्योंकि असुर ने अभी कुछ देर पहले कनिका से कहा था कि आज वह उसे सच में अपना राक्षस रूप दिखाएगा, और अब कनिका का दिल मानो उसके सीने से बाहर आने को हो रहा था। वहीं डॉक्टर अब उन दोनों को अजीब नज़रों से देख रहे थे।

लेकिन अगले ही पल जो असुर ने कहा, डॉक्टर की आंखें बड़ी हो गईं।

असुर बिना डॉक्टर की तरफ देखे बोला,

“Get lost… everyone.”

असुर की बात सुनकर उनमें से सीनियर डॉक्टर असुर की तरफ देखकर धीमे स्वर में बोला,

“पर मिस्टर पठानी…”

उसे डॉक्टर ने बस इतना ही कहा था कि असुर ने अपनी सर्द नजरों से उसे देख लिया। जैसे ही डॉक्टर ने असुर की सर्द नजर खुद पर महसूस की, उसकी आवाज उसके गले में ही अटक गई। अब उसने इससे आगे कुछ कहने की हिम्मत नहीं की और अपना सर झुकाते हुए वहां से निकल गया। सीनियर डॉक्टर के जाते ही पीछे से उनकी टीम भी निकल चुकी थी।

और समर अभी बेड पर लेटा था। इस वक्त उसे ऑक्सीजन दी जा रही थी और उसके चेहरे पर ऑक्सीजन मास्क लगा हुआ था।

समर की अब ऐसी हालत देखकर कनिका की आंखों में आंसू आ गए और उसकी आंखें नम हो गईं। वह अब असुर की तरफ देखकर बोली—

“प्लीज़… इसमें मेरे भाई का कोई कसूर नहीं… आपको जो सज़ा देनी है मुझे दीजिए… आपको राक्षस बनना है मेरे सामने बनिए… पर मेरे भाई को छोड़ दीजिए…”

इतना कहते ही कनिका के आंसू उसके गालों पर लुढ़क आए। उसके आंसुओं को देखकर असुर के चेहरे पर डेविल स्माइल आ गई और अगले ही पल उसने अपने हाथ से एक उंगली बढ़ाकर उसके आंसू अपनी उंगली पर लेते हुए कहा—

“च… च… च…

कितनी बेचारी हो न? कितनी बेबस… अपने भाई के लिए क्या-क्या तुम्हें सहना पड़ रहा है… मेरा ज़ुल्म… मेरा क्रोध…”

इतना कहते हुए अब असुर उसके ऊपर झुका और उसकी आंखों में देखते हुए बोला—

“एक बात पूछूं?

क्यों सह रही हो मेरे साथ इतना दर्द?

अगर तुमने मेरी बहन के साथ इतना बुरा किया था… तो तुम भाग क्यों नहीं जाती? ”

जैसे ही असुर ने यह बात कही, कनिका की आंखें बड़ी हो गईं और वह बड़ी-बड़ी आंखों से असुर को देखने लगी।

लेकिन अगले ही पल असुर ने उसके गालों को अपने हाथों में भरकर गुस्से से जबड़े पीसते हुए बोला—

“लेकिन असुर सिंह पठानी से बचना… मुमकिन ही नहीं… नामुमकिन है!

अरे तुझे क्या लगा? मैं तुझे छोड़ दूंगा?

तू भाग के तो देख… तेरी टांगें ना तोड़ दूं!”

इतना कहते हुए उसने उसका चेहरा झटक दिया।

“चल। आज तुझे अपने राक्षस होने का एक और झटका देता हूं। चल मेरे साथ।”

इतना कहकर असुर ने कनिका का हाथ पकड़ा और उसे खींचते हुए बाहर की तरफ ले जाने लगा।

वहीं कनिका अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली—

“छोड़िए असुर बाबू… छोड़िए मुझे… मेरे भाई को भी मेरी ज़रूरत है…”

उसकी बात पर असुर एक पल के लिए रुका और उसकी तरफ देखते हुए उसने फिर से चुटकी बजाई।

चुटकी बजाते ही सभी डॉक्टर दोबारा समर के कमरे में चले गए।

यह देखकर कनिका ने थोड़ी राहत की सांस ली…

लेकिन अगले ही पल असुर ने दोबारा कनिका को खींचते हुए बाहर ले जाना शुरू कर दिया।

जिस तरह से असुर उसे खींचकर ले जा रहा था, कनिका का दिल इस वक्त जोर-जोर से धड़क रहा था।

वह समझ नहीं पा रही थी कि आखिर वह असुर का गुस्सा शांत करे तो करे कैसे।

वह असुर के गुस्से से थक चुकी थी…

लेकिन असुर का गुस्सा तो शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा था।

कहीं न कहीं वह वह सज़ा भुगत रही थी जिसे उसने गुनाह किया ही नहीं था…

और इस बात से अनजान असुर उसे दर्द पर दर्द दिए जा रहा था।

असुर उसे खींचते हुए बाहर लाया और पठानी हाउस के सामने लाकर खड़ा कर दिया।

इस वक्त दोपहर थी और गर्मी का मौसम।

धूप इतनी तेज थी कि किसी को भी जला दे।

ऊपर से कनिका ने अपने पैरों में चप्पल भी नहीं पहनी थी,

जिस वजह से उसके पैर जिस जमीन पर थे… वह पत्थर एकदम तप रहा था।

कनिका के पैर पूरी तरह से जल रहे थे… उसकी पैरों की उंगलियां सिकुड़ने लगी थीं।

वहीं असुर अब उसे डेविल एक्सप्रेशन से देखते हुए बोला—

“बहुत शौक है ना… मुझे जलाने का? याद आया?”

यह सुनकर कनिका को वह पल याद आया…

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Flashback – अतीत

कनिका और असुर बाजार में थे।

कनिका एक सब्ज़ी वाले से सब्ज़ी खरीद रही थी।

असुर उसके पास आते हुए बोला—

“जल्दी करो न… कितना टाइम लगाओगी तुम?”

कनिका ने छोटी-छोटी आंखें करके उसे देखा—

“अभी तो सिर्फ सब्ज़ी खरीदी है… मुझे अभी राशन भी लेना है।

मां आज बाहर नहीं निकली, तो मुझे ही आना पड़ा। मैं क्या करती?”

उसकी बात पर असुर ने गहरी सांस ली—

“जल्दी करो…”

कनिका मुंह बनाते हुए बोली—

“नहीं! मुझे तुम्हारे साथ नहीं जाना। मैं तुमसे गुस्सा हूं।”

असुर ने हैरानी से पूछा—

“अब कौन सी वजह आ गई गुस्सा होने की?”

कनिका बोली—

“कल मैं आपको आपकी एक सहेली के साथ देखा था।

मुझे भी ज़रूरी है… आज मैं आपको जलाऊंगी।”

असुर ने आंखें छोटी करते हुए कहा—

“वो मेरी चाइल्डहुड फ्रेंड है… हम स्कूल में साथ पढ़ते थे।

वो सिर्फ बातें कर रही थी, हम कोई पप्पियां-झप्पियां नहीं कर रहे थे।”

कनिका ने मुंह बनाया—

“तो ठीक है… आप बात कर रहे थे न उससे?

अब मैं भी यहां किसी भी लड़के से बात करूंगी।”

यह सुनकर असुर का चेहरा काला पड़ गया।

वह गुस्से से बोला—

“वो मेरी फ्रेंड है!

और तुम यहां किसी भी लड़के से बात करोगी?”

कनिका ने ताना मारा—

“तुम करो तो पुण्य… हम करें तो पाप?

अरे असुर बाबू… आपकी बात अलग, मेरी बात अलग… ये कौन सा रूल हुआ?”

असुर ने जबड़े भींचते हुए कहा—

“तुम कभी किसी और से बात नहीं कर सकती। समझी?

तुम पर सिर्फ… मेरा हक है।”

उसने उसकी कमर पकड़कर उसे अपने करीब कर लिया।

कनिका ने उसके सीने पर हाथ रखते हुए पूछा—

“क्या सच में आप पर मेरा हक है?”

असुर बोला—

“बिल्कुल है।”

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Present Time

कनिका अब व्यंग्य से हंसी—

“हाँ… तब आप पर मेरा हक भी तो था…”

यह कहकर उसने नमी भरी आंखों से असुर को देखा।

लेकिन उसकी नमी का असुर पर कोई असर नहीं हुआ।

उसने चेहरा दूसरी तरफ घुमाते हुए कहा—

“आज सारा दिन तुम इसी धूप में जलती रहोगी।

अगर तुम यहाँ से हिली… तो तुम्हारे भाई का इलाज वहीं रुक जाएगा।”

कनिका ने उसकी तरफ देखते हुए कहा—

“जैसा आपको ठीक लगे… असुर बाबू।”

इतना कहकर कनिका फर्श पर किसी भूत की तरह खड़ी हो गई।

उसके पैर पूरी तरह नंगे थे… जल रहे थे…

लेकिन उसके मुंह से एक आवाज तक नहीं निकल रही थी।

और यह देखकर असुर के जबड़े कस चुके थे।

असुर ने उसे सर्द नजर से देखा और अगले ही पल पलटकर बाहर की तरफ चल दिया।

कुछ ही सेकंड में वह गाड़ी में बैठा और वहां से निकल गया।

लेकिन कनिका…

अभी भी वहीं खड़ी थी…

तेज धूप में… तपती जमीन पर…

एक ऐसी तकलीफ में, जिसमें कोई आम इंसान खड़ा भी नहीं रह सकता

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वहीं दूसरी तरफ…

असुर की गाड़ी इस वक्त तेजी से सड़कों पर दौड़ रही थी…

और उसकी आंखों के सामने बार-बार कनिका का चेहरा घूम रहा था।

To be continued…

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