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Pathar dil asur

पठानी हाउस,

असुर इस वक्त कनिका के ऊपर झुका हुआ था और उन दोनों की गर्म साँसें आपस में टकरा रही थीं। कनिका का दिल इस वक्त ज़ोर-ज़ोरों से धक-धक कर रहा था। वह इस वक्त असुर को बाहर जाने से रोक रही थी क्योंकि बाहर अब असुर ने और भी लड़कियाँ बुलाई थीं। और अब अगर असुर किसी के साथ भी रात बिताता या इंटिमेट होता, तो इसमें कनिका पूरी तरह से टूट जाती… और अब वो टूटना नहीं चाहती थी।

कनिका अपनी लड़खड़ाती हुई आवाज़ में बोली—

“मत कीजिए असुर बाबू… इस बार टूटे तो संभल नहीं पाएँगे…”

उसकी बात सुनकर एक पल के लिए असुर ने उसकी आँखों में देखा, जिसमें उसे उम्मीद दिखाई दे रही थी कि शायद असुर उसकी बात मान ले। लेकिन असुर अब उसे डेविल नज़रों से देखते हुए पीछे की तरफ हुआ और दरवाज़े की तरफ मुड़ने ही वाला था… कि तभी कनिका दरवाज़े के आगे आकर खड़ी हो गई।

जैसे ही कनिका दरवाज़े के आगे खड़ी हुई, असुर की नज़रें उस पर गहरी हो गईं। अगले ही पल असुर ने उसके बालों को पीछे से पकड़ते हुए जबड़े कसे और बोला—

“तेरी इतनी औक़ात नहीं है जो तू असुर सिंह पठानी को रोक सके।”

उसकी बात पर कनिका उसकी तरफ देखते हुए बोली—

“औक़ात तो तब भी नहीं थी असुर बाबू जब आपसे इश्क हुआ था…

अपनी हैसियत देखकर तो मैं आपसे इश्क भी नहीं करती… और शायद आपने भी मेरी औक़ात देखकर ही मुझसे इश्क न किया हो…”

जैसे ही कनिका ने ये बात कही, असुर के जबड़े पूरी तरह कस गए। गुस्से से उसने कनिका को दीवार से सटाते हुए उसके गालों को अपनी उँगलियों में भींचा और पीसकर बोला—

“यही तो मेरी सबसे बड़ी गलती है… कि मैं तुझ जैसी दो कौड़ी की लड़की से इश्क कर बैठा।

लेकिन अब मैं तुझसे नफ़रत करता हूँ…”

इतना कहते हुए असुर गुस्से से काँप रहा था। उसका चेहरा पूरी तरह लाल पड़ चुका था। अब उसने कनिका को धक्का दिया, जिससे कनिका पीछे की तरफ ज़मीन पर जा गिरी। और कनिका की आँखों में नमी तैर गई।

वह तड़पकर फिर बोली—

“मत कीजिए असुर बाबू… कहीं आपको अपनी बातों पर पछतावा न हो… और अगर आपने आज दरवाज़ा खोल दिया तो—”

कहते-कहते कनिका चुप हो गई, क्योंकि असुर ने उसकी बात सुने बिना ही दरवाज़ा खोल दिया था।

और अगले ही पल एक नहीं बल्कि दो लड़कियाँ अंदर आईं।

इस बार असुर ने एक नहीं, दो लड़कियों को बुलाया था।

इसे देखकर कनिका की साँस उसके गले में अटक गई। असुर अब अपनी जगह से घूमकर कनिका को डेविल नज़रों से देखते हुए बोला—

“चल, उठ! बिस्तर की चद्दर बदल। अब ज़्यादा दिमाग मत खा।”

इतना कहते हुए वह सोफ़े पर जाकर बैठ गया। अब उसने अपनी कमर पर तौलिया लपेट लिया था, जबकि जब वह पहले उठा था तब उसने तौलिया हटा दिया था… पर दरवाज़े की तरफ आते वक्त फिर से बाँध लिया था।

असुर ने अपनी दोनों टाँगें टेबल पर फैलाईं, सोफ़े पर लीन होकर बाँहें रेस्ट पर रखीं और सर पीछे टिकाकर आँखें बंद कर लीं।

वहीं लड़कियाँ उसके इर्द-गिर्द बैठ गईं और उसकी चेस्ट पर उँगलियाँ फेरने लगीं।

कनिका अपनी जगह पर जमी बैठी थी… तड़पकर काँपती हुई आवाज़ में बोली—

“आप ऐसे तो नहीं थे…”

उसकी बात सुनकर असुर की बंद आँखें खुलीं, और इस वक्त उसकी लाल आँखें आग उगल रही थीं।

वह गुर्राया—

“पहले तूने अपनी औक़ात भी तो नहीं दिखाई थी!”

फिर बोला—

“अब ज़्यादा बकचोदी मत कर। उठ! जाकर मेरी चद्दर बदल।

मुझे इन लड़कियों के साथ रात बितानी है।

बहन की लोड़ी… जब से आई है दिमाग की दही करके रखी हुई है।

ऐसा लगता है इश्क न करके ज़हर खा लिया होता।”

इतना बड़बड़ाते हुए असुर ने फिर सर पीछे टिकाया और आँखें बंद कर लीं।

वहीं कनिका उसकी गालियाँ सुनकर सुन्न पड़ गई… उसका दिल अंदर ही अंदर रो रहा था लेकिन आँखों में अब आँसू भी नहीं रह गए थे।

अब वह उठी… ऐसा लग रहा था जैसे उसके शरीर में जान ही न बची हो। वह बेड की तरफ न जाकर बाहर की तरफ जाने लगी।

जैसे ही उसके कदम बाहर की तरफ बढ़े, तभी लड़कियाँ बोलीं—

“ओए! कहाँ जा रही है? जाकर बिस्तर पर चद्दर बिछा!”

जैसे ही लड़कियों ने ये कहा, असुर की आँखें फिर खुल गईं। उसने कनिका की तरफ देखा—

कनिका बिना रुके आगे बढ़ रही थी…

यहाँ तक कि उसके कदम दहलीज़ तक पहुँच चुके थे।

तभी पीछे से असुर की भारी, खतरनाक आवाज़ आई—

“रुक जा…

अगर तूने अपना एक कदम भी इस कमरे से बाहर बढ़ाया…

तो अगले ही पल पिस्टल भी मेरी… और सीना भी मेरा…”

जैसे ही ये सुना, कनिका की आँखें नम हो गईं। उसका दिल तड़प से भर उठा। वह कुछ भी मंज़ूर कर सकती थी, लेकिन असुर अपनी जान ले ले—यह कभी मंज़ूर नहीं कर सकती थी।

असुर में ही तो उसकी जान बसती थी…

और वह जानती थी कि असुर इतना ज़िद्दी है कि जो कह देता है, वह करता ज़रूर है।

इसलिए उसके कदम वहीं ठहर गए।

उसने पलटकर असुर की तरफ देखा… उसकी आँखें सिर्फ नम नहीं बल्कि लाल पड़ चुकी थीं।

वह वापस अंदर आई और असुर के सामने आकर खड़ी हो गई… अपनी सूनी आँखों से उसे देखने लगी।

वहीं असुर की नज़रें इस वक्त कनिका पर बेहद गहरी थीं।

वह दाँत पीसकर बोला—

“तर क्या रही है?

चल जाकर बिस्तर की चद्दर बदल!”

इतना कहते हुए उसने पास बैठी लड़की के बालों में हाथ फिराने शुरू किए और कनिका की तरफ देखते हुए अपने होंठ उस लड़की के गले पर रख दिए।

कनिका ने अपनी आँखें बंद कर लीं और चेहरा दूसरी तरफ मोड़ लिया।

यह देखकर असुर के होंठों के कोने मुड़ गए—एक गहरा डेविल स्मिरक।

कनिका बेड की तरफ मुड़ी। एक बेजान लाश की तरह चलते हुए बेड के पास आई और चद्दर हटाने लगी।

अभी वह अपना काम कर रही थी कि तभी असुर के कानों में किसी के चिल्लाने की आवाज़ आई—

“अरे ओह असुर…

नामर्द कहीं के!

बाहर निकल!”

जैसे ही असुर ने यह सुना… उसका चेहरा

काला पड़ गया।

वहीं कनिका पूरी तरह काँप गई—

उसका दिल जैसे धड़कना भूल गया।

To be continued…

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