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Talab lagakar ishq ki

Antonio,,

मृत्युंजय इस वक्त बालकनी के दरवाजे में पीठ लगाकर सामने बड़ी सी तस्वीर, जो की धानी की थी, उसे अपनी गहरी निगाहों से देख रहा था और इस वक्त उसके आसपास शराब की बोतल पड़े हुए थे और एक बोतल उसने अपने हाथ में पड़ी हुई थी जो की बार-बार अपने होठों से लग रहा था। उसकी लाल नज़रें इस वक्त धानी की फोटो पर लगातार बनी हुई थी। वह इस वक्त धानी की फोटो को जिस तरह से देख रहा था, उसकी आंखों में इस वक्त धानी के लिए दीवानगी साफ दिखाई दे रही थी और इस वक्त उसकी आंखें जैसे हद से ज्यादा लाल थी। ऐसा लग रहा था जैसे उसके दिमाग में बहुत कुछ चल रहा हो।

अब उसने गहरी सांस ली और हाथ में पड़ी हुई बोतल एक ही झटके में सारी खत्म कर जमीन पर दे मारी और अपनी जगह से उठा।

और अगले ही पल उसने अपनी जेब से फोन निकाला। एक नंबर डायल करने लगा। दो-तीन रिंग जाते ही दूसरी तरफ से किसी ने फोन उठाया और यह और कोई नहीं आरव था।

आरव ने फोन उठाते ही कहा —

“जी बॉस…”

तभी जो बात मृत्युंजय ने कही, उसे सुनकर आरव की आंखें बड़ी हो गई। वह अपनी लड़खड़ाती हुई आवाज में बोला —

“लेकिन… वो आएगी ही क्या?”

तभी मृत्युंजय बोला —

“उसे आना होगा…”

कहते हुए मृत्युंजय ने फोन काट दिया और अपनी हसरत भरी निगाहों से एक बार फिर से धानी की फोटो को देखने लगा।

अब वो धानी की फोटो को देखते हुए बोला —

“तेरे इश्क की तलब दिल को ऐसी लागी, के दिल तेरे बिना मानता ही नहीं…”

यह लाइन कहते हुए मृत्युंजय बड़े प्यार से धानी की फोटो पर हाथ फेरते हुए उसके होठों पर चूमने लगा। अब वह अपनी गहरी निगाहों से धानी को देखते हुए —

“क्यों ना इश्क का दीदार हो जाए…”

इतना कहकर वह अब अपनी जगह से खड़ा हुआ और उसने अपने कदम बाहर की तरफ बढ़ा दिए।

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वहीं दूसरी तरफ…

धानी के पापा सौरभ इस वक्त किसी से फोन पर बात कर रहे थे और उनके चेहरे पर इस वक्त बेहद परेशानी झलक रही थी। और उसके साथ ही धानी का मौसी का लड़का, जो की कितनी देर से धानी के साथ रह रहा था — राहुल — वह भी खड़ा था। और उन दोनों के चेहरे पर इस वक्त बेहद परेशानी झलक रही थी।

कुछ देर बात करने के बाद सौरभ जी ने फोन रखा। वही धानी, जो कि सीढ़ियों से उतरकर नीचे की तरफ आ रही थी, यह चीज देख रही थी। जब उसने सौरभ जी और राहुल को परेशान होते देखा तो उनके पास आते हुए बोली —

“क्या बात है पापा? आप इतने परेशान क्यों हैं?”

नहीं, राहुल अब आगे की तरफ आकर बोला —

“हमें दो दिनों के लिए मुंबई जाना पड़ेगा… क्योंकि जाना बहुत जरूरी है। और यह भी नहीं कि अंकल अकेले जाए, मुझे भी जाना जरूरी है। वहां पर हमारी एक डील क्रैक होने वाली थी जो बीच में अटक गई है… और उस डील को पूरा करना ही हमारी कंपनी के लिए प्रॉफिट होगा। अगर लॉस में गई तो बहुत काम खराब होगा…”

राहुल की बात पर धानी अब हल्का सा मुस्कुराई और अपने पापा के पास आकर उनके कंधे पर हाथ रखकर बोली —

“तो क्या हुआ पापा? आप और राहुल जाइए। मैं ठीक हूं। एक-दो दिन की बात है, तब फिर तो आप आ ही जाएंगे…”

तभी सौरभ जी बोले —

“लेकिन बेटा, इतने सालों में तुम अकेली रही कहां हो? और अब तुम अकेली रह लोगी?”

वहीं धानी अपनी आंखें छोटी कर बोली —

“तो क्या हुआ पापा? क्या मैं छोटी बच्ची हूं जो मैं रह नहीं पाऊंगी? कैसी बातें करते हैं आप? पापा आपकी प्रिंस अब बड़ी हो गई है…”

नहीं, सौरभ जी अब उसके गाल पर हाथ रखकर बोले —

“पर बेटा… दो दिन…”

अभी वह बोल ही रहे थे कि तभी धानी उनके हाथ को अपने हाथ में लेते हुए बोली —

“क्या पापा आप भी ना… कभी-कभी मुझे लगता है मैं नहीं, आप बच्चे हो।”

धानी की बात पर अब सौरभ जी फीकी-सी मुस्कुराए। कहीं ना कहीं वह जानते थे कि धानी इस वक्त दिल से बहुत ज्यादा घायल है और अपने दुख को अपने अंदर ही अंदर दबाए बैठी है। इसीलिए उनका छोड़कर जाने का मन नहीं कर रहा था।

पर अब धानी जिस तरीके से कह रही थी, वह जानते थे कि अगर उन्होंने अब जाने से मना किया तो धानी उनसे नाराज़ हो जाएगी।

इसीलिए अब उन्होंने धानी का चेहरा अपने हाथों में पकड़ा और उसके माथे को चूमते हुए बोले —

“अपना ख्याल रखना बेटा। अगर किसी भी चीज़ की जरूरत हो तो एक बार फोन करना। तुम्हारे पापा यहां दौड़े चले आएंगे। मुझे डील ज्यादा जरूरी नहीं… मुझे तुम ज्यादा जरूरी हो।”

सौरभ जी की बात पर धानी ने अपनी पलकें झुका लीं और उनके गले लगाते हुए बोली —

“अब आप जल्दी से पैकिंग करिए। मैं ठीक हूं… ओके? ठीक हूं मैं।”

इतना कहते हुए धानी ने अपने पापा को कसकर हग कर लिया।

तकरीबन पौने दो घंटे बाद सौरभ जी और राहुल ने अपना लगेज पैक कर लिया था और अब वह निकलने वाले थे। वही धानी भी उन्हें देख रही थी।

कुछ ही देर में उन्होंने अपना सारा सामान गाड़ी में रखवाया।

सौरभ जी का तो अभी भी सारा ध्यान धानी पर था। उन्होंने अब एक बार फिर से धानी को हग करते हुए कहा —

“प्लीज बेटा, अपना ध्यान रखना…”

तभी धानी उन्हें घूरते हुए बोली —

“ओ हो पापा… आप भी ना…”

इतना कहते हुए अब धानी ने उनके कंधों से पकड़कर उन्हें गाड़ी की तरफ घुमाया और पीछे से प्यार से धक्का देते हुए बोली —

“जाइए… मैं ठीक हूं। कोई बात नहीं। वैसे भी सर्वेंट है घर पर…”

इतना कहते हुए उसने सौरभ जी को गाड़ी में बिठाया और कुछ ही देर में उनकी गाड़ी विला से निकल गई।

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जैसे ही उनकी गाड़ी निकली, बाहर एक ब्लैक कलर की मर्सिडीज-बेंज खड़ी थी। उनके निकलते ही उसमें बैठे शख्स की नजरें घर पर गहरी हो गईं और होठों पर तिरछी मुस्कराहट तैर गई।

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वहीं दूसरी तरफ धानी उनको जाते ही अंदर की तरफ आई।

अब तक शाम के 7:00 बज चुके थे।

धानी का कुछ खाने का मन नहीं था, इसीलिए वह अपने कमरे में गई।

बेड पर लेट गई और लेटते ही उसे नींद आ गई।

रात के तकरीबन 10 बजे…

धानी इस वक्त गहरी नींद में सो रही थी कि उसे लगा कि कोई उसके गले को चूम रहा हो…

जिस वजह से उसकी नींद हल्की-हल्की खुलने लगी।

और जब उसने अपनी आंखें खोलीं और सामने का नज़ारा देखा —

उसका दिल धड़कना ही भूल गया।

उसकी सांसें उसके गले में अटक चुकी थीं…

और आंखों में डर भर गया था…

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To be continued…

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