
हाईवे पर…
एक गाड़ी बड़ी तेजी से हाईवे पर दौड़ रही थी, और उस गाड़ी में इस वक्त आदर्श बैठा हुआ था और उसके पीछे वाली सीट पर ध्वनि बैठी हुई थी। इस वक्त उनकी गाड़ी हद से ज्यादा स्पीड से दौड़ रही थी। आदर्श की आंखें इस वक्त हद से ज्यादा लाल थी और माथे पर पसीना उभरा हुआ था। वहीं ध्वनि भी बड़े ध्यान से उसका चेहरा देख रही थी।
जब से वह फोन आया था तब से आदर्श ने एक शब्द भी ध्वनि से नहीं कहा था, ना ही ध्वनि ने। आदर्श ने उठकर जल्दी से कपड़े पहनना शुरू कर दिया था और उसे देखकर ध्वनि ने भी कपड़े पहन लिए थे।
तकरीबन 20–25 मिनट बाद उनकी गाड़ी एक बड़े से सुनसान सड़क पर आकर रुकी और वहां का नजारा देखकर ध्वनि की आंखें बड़ी हो गईं।
क्योंकि एक कार जो कि टुकड़ों में बटी हुई थी, सामने खड़ी थी, और उसी के पास काफी सारी पुलिस आई हुई थी। सामने ट्रक खड़ा था जो कि पूरी तरह से रक्त से सना हुआ पड़ा था, उसकी इनक्वायरी हो रही थी।
आदर्श अब अपनी कार से बाहर निकला और उन पुलिस वालों के पास जाकर खड़ा हुआ। आदर्श को देखते ही पुलिस वालों के चेहरे पर पसीने छलकने लगे। वहीं जब आदर्श गाड़ी से बाहर निकला, पीछे ही ध्वनि भी बाहर निकली और आदर्श के पीछे चल दी।
पुलिस वालों ने अब आदर्श को अपने पीछे आने का इशारा किया और अगले ही पल वह आदर्श को सामने खड़ी एंबुलेंस की तरफ लेकर गए।
एंबुलेंस वहीं खड़ी थी, उसका पिछला दरवाज़ा खुला हुआ था और सामने ही एक लाश पड़ी हुई थी, जिसके मुंह पर पूरी तरह से कपड़ा दिया गया था।
उस लाश को देखकर आदर्श का दिल धक-धक करने लगा,
वहीं ध्वनि के कदम तो वहीं पर जाम से गए थे।
उसकी सांसें गहरी होने लगीं।
पुलिस वाले ने दूसरे कांस्टेबल को इशारा किया, तो उसने नीचे पड़ी लाश के चेहरे से कपड़ा उठाया…
उसे देखकर आदर्श एक पल के लिए सांस लेना भूल गया।
लेकिन इससे पहले कि वह कुछ सोच पाता या कुछ समझ पाता, अपनी जगह पर खड़ा-खड़ा सन्न रह गया…
क्योंकि ध्वनि तेजी से भागते हुए लाश की तरफ आई और उसके सीने पर सिर रखकर रोने लगी।
यह नज़ारा देखकर आदर्श हैरत से ध्वनि को देखने लगा।
वहीं ध्वनि रोते हुए चीखी—
“उत्कर्ष!! उठो ना… उत्कर्ष! तुम ऐसे कैसे कर सकते हो? उठो!!
तुमने तो मुझसे कहा था कि तुम मुझसे बहुत प्यार करते हो…
तुम मुझे छोड़कर नहीं जाओगे… और तुम ऐसे कैसे कर सकते हो?
उठो ना उत्कर्ष…!”
आदर्श तो जैसे अपनी जगह पर खड़ा-खड़ा जम सा गया था…
उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि उत्कर्ष का ध्वनि से क्या संबंध?
उत्कर्ष और कोई नहीं, आदर्श का छोटा भाई था…
जो कि आदर्श से सिर्फ 6 महीने छोटा था।
उसे कनाडा गए हुए अभी 8 महीने हुए थे और आज उत्कर्ष बिना आदर्श को बताए कनाडा से वापस आया था और आदर्श को सरप्राइज देने वाला था…
लेकिन रास्ते में एक्सीडेंट होने की वजह से अब वह चल बसा था।
हैरानी की बात यह थी कि ध्वनि उत्कर्ष को कैसे जानती थी?
यही सोचकर आदर्श का दिल जैसे रुकने को हो रहा था।
वहीं ध्वनि पागलों की तरह रोए जा रही थी और उत्कर्ष के सीने पर सिर रखकर फूट-फूट कर चिल्ला रही थी। उसका दिल जैसे चिथड़ों में बंट गया था।
आदर्श का दिमाग यह नज़ारा देखकर सुन्न पड़ चुका था।
वहीं कांस्टेबल ध्वनि को रोकते हुए बोला—
“मैडम, ऐसा मत कीजिए… लाश को पोस्टमार्टम के लिए ले जाना है…”
अभी कांस्टेबल बोल ही रहा था कि ध्वनि चीखकर बोली—
“वह मरा नहीं है!! वह जिंदा है!
देखना अभी उठेगा! यह मेरे बिना नहीं रह सकता!
यह 8 महीने से कनाडा गया हुआ था ना, इसलिए मैं इससे नाराज़ थी!
मैं इसका फोन नहीं उठा रही थी!
और यह थोड़ी बस… कोई वजह के बिना… मुझे छोड़कर चला जाएगा!
पागल है यह लड़का! अभी उठेगा… देखना!”
इतना कहकर वह उत्कर्ष को झकझोरने लगी।
आदर्श बस ध्वनि का रोता हुआ चेहरा ही देखे जा रहा था।
आज पहली बार उसे ध्वनि को देखकर एक अजीब सा एहसास हुआ,
जो कि वह खुद नहीं जानता था।
अब उसने अपने कदम आगे बढ़ाए और ध्वनि के कंधे पर हाथ रखा।
ध्वनि ने अपना चेहरा ऊपर उठाकर आदर्श की तरफ देखा…
और अगले ही पल वह आदर्श के गले से लग गई।
ध्वनि को इस तरह से अपने गले लगते देख एक पल के लिए
आदर्श की सांस जैसे उसके गले में अटक गई।
इस एक हफ्ते में कभी भी ध्वनि ने आदर्श को इस तरह से गले नहीं लगाया था।
वहीं ध्वनि आदर्श के गले लगे हुए फूट-फूट कर रोते हुए बोली—
“आदर्श… उठाइए ना इन्हें…
यह उठ क्यों नहीं रहे…
यह तो मेरी सारी बातें मानते थे…
पहले मेरी सारी बातें मानते थे…
फिर इन्होंने कनाडा का टूर बनाया…
मैंने मना किया, पर फिर भी ये चले गए…
अब यह खुद मुझसे नाराज़ हो गए हैं कि मैंने फोन नहीं उठाया…
उठाइए ना इन्हें…”
अब आदर्श को जैसे कुछ सुनाई देना ही बंद हो गया था।
उसे बस इतना महसूस हो रहा था कि ध्वनि उसके गले से लगी हुई है।
कुछ देर बाद ध्वनि आदर्श से अलग हुई और उसके कॉलर को पकड़कर जोर से बोली—
“बोलिए ना! उठाइए इन्हें!!
ऐसी नाराज़गी थोड़ी कोई जताता है!”
कांस्टेबल और सभी पुलिस ध्वनि की हालत देखकर परेशान थे।
रो-रोकर सूजी हुई आंखें, चेहरा लाल…
आदर्श खुद भी होश खो रहा था।
लेकिन उसने खुद को संभाला और ध्वनि की आंखों में देखते हुए बोला—
“वह… मर चुका है।
अब वह कभी वापस नहीं आएगा…”
बस इतना कहा था कि—
ध्वनि ने एक जोरदार तमाचा आदर्श के गाल पर दे मारा।
आदर्श की आंखें बंद हो गईं और चेहरा दूसरी तरफ मुड़ गया।
ध्वनि दांत पीसते हुए चिल्लाई—
“वह मुझे छोड़कर नहीं जा सकता!!
प्यार करता था मुझसे!
और मैं भी उससे बहुत प्यार करती हूं…
और ता-उम्र करती रहूंगी!!”
यह सुनते ही आदर्श के जबड़े कस गए।
अभी तक उसे ध्वनि के थप्पड़ का फर्क नहीं पड़ा था…
लेकिन ये आखिरी लाइन सुनकर वह जल उठा।
उसकी मुट्ठियाँ भींच गईं।
ध्वनि अब उत्कर्ष की तरफ मुड़कर बैठने वाली ही थी
कि तभी आदर्श ने उसके बालों से पकड़ लिया और
उसे अपनी तरफ खींचकर आंखों में आंखें डालकर गरजा—
“क्या बकवास की तुमने अभी?!
तुम उससे प्यार करती हो?!”
ध्वनि भी गुस्से से आदर्श का कॉलर पकड़कर चिल्लाई—
“हाँ!! करती हूँ मैं उससे प्या—”
वह अपनी बात पूरी कर पाती, इससे पहले…
आदर्श ने अचानक उसके बालों से खींचकर
उसके होठों को अपने होठों में भर लिया
और पागलों की तरह वहीं खड़ा उसे किस करने लगा।
ध्वनि की सांस जैसे उसके गले में अटक गई।
पुलिस कांस्टेबल यह देखकर सन रह गए…
लेकिन वह रुकने की हिम्मत नहीं कर पाए
और ट्रक की जांच में वापस लग गए।
आदर्श पागलों की तरह ध्वनि के होठों को चूमता जा रहा था।
ध्वनि झटपटाती हुई उसे सीने पर मुक्के मार रही थी।
उसे आदर्श पर गुस्सा हद से ज्यादा आ रहा था।
फि
र पता नहीं कहां से ध्वनि में जान आई—
उसने पूरा जोर लगाकर आदर्श को धक्का दिया
और एक बार फिर से उसका हाथ उठाकर आदर्श पर जड़ दिया।
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To Be Continued…









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