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Ghungroo

Guys,, किसी वजह के कारण कामख्या का नाम चेंज करदिया है objection uthai hai jis vajah se mujhe Kamakhya ka naam change karna pada kyunki Kamakhya hamari Kamakhya Devi maa ke naam se prasiddh hai to main unka Naam is noble mein use nahin kar sakti to isiliye Maine Kamakhya ki jagah Kanika kar diya hai I hop aap log samjhenge

Highway पर,

असुर की गाड़ी इस वक्त हाईवे पर दौड़ रही थी, और उसके हाथ में इस वक्त शराब की बोतल थी, जो कि वह होठों से लगाए तेजी से गाड़ी चला रहा था। उसकी आंखें, जो कि खून की तरह लाल थीं, आगे के मिरर से पिछली सीट पर बेहोश पड़ी कनिका पर टिकी थीं। इस वक्त कनिका पूरी तरह से बेहोश थी, और उसके चेहरे से रौनक पूरी तरह गायब थी। वही असुर, उसे अपनी लाल आंखों से एकटक देखते हुए, अपने होठों से शराब लगाकर गटागट पिए जा रहा था। उसकी नज़रें एकटक कनिका के चेहरे पर बनी हुई थीं।

कुछ ही देर में उनकी गाड़ी एक बड़े से हवेली जैसे घर के आगे आकर रुकी। घर इतना बड़ा था कि हवेली भी उसके सामने फीकी पड़ जाए। घर के बाहर नेम प्लेट पर "पठानी हाउस" लिखा हुआ था।

असुर, जो कि गाड़ी में बैठा अभी भी शराब पी रहा था, अपनी गहरी नज़रों से फ्रंट मिरर से कनिका को देखता जा रहा था। वही कनिका, जिसकी पीठ पर कांच धंसा हुआ था, उसे अभी तक होश नहीं आया था। असुर अब गाड़ी से बाहर निकला, और अपनी बैक सीट का डोर खोलकर अगले ही पल उसने कनिका को अपनी गोद में उठाया और सामने पठानी हाउस की तरफ अपनी लाल आंखों से देखने लगा।

देखते ही देखते असुर ने अपने कदम पठानी हाउस की तरफ बढ़ा दिए। पठानी हाउस के बाहर दो गार्ड खड़े थे। उन्होंने जब असुर को देखा तो हैरानी से उनकी आंखें बड़ी हो गईं, क्योंकि पिछले दस सालों से असुर वहां नहीं आया था। जब से असुर की माँ और डैड का देहांत हुआ था, उसने यहां पर आना छोड़ दिया था।

18 साल के असुर ने अपनी जिंदगी में इतना कुछ देखा था कि वह पूरी तरह से टूट चुका था — और तब जाकर उसे एक सहारा मिला था, और वह थी कनिका...

पर आज हालात बहुत अलग थे। कभी वह कनिका से इश्क कर बैठा था, लेकिन आज उसकी आंखों में कनिका के लिए सिर्फ और सिर्फ नफरत थी। और इस नफरत का कारण कनिका खुद थी। और यह कारण क्या था — वह तो आगे चलकर ही पता चलने वाला था।

देखते ही देखते असुर, कनिका को पठानी हाउस के अंदर लेकर गया। जैसे ही उसने अंदर कदम रखा, उसकी आंखें आग उगलने लगीं। एक पल के लिए उसके कदम वही दहलीज पर ठहर गए, और उसकी आंखों के सामने एक औरत का चेहरा घूम गया, जो बड़े प्यार से उसके गाल पर हाथ रख रही थी। पर अगले ही पल उसने अपना सिर झटका और अंदर की तरफ बढ़ गया।

तकरीबन 15-20 मिनट बाद,

उसने कनिका को एक कमरे में लिटाया और खुद कमरे से बाहर निकल गया।

बाहर आकर उसने एक सर्वेंट को आवाज़ लगाई, जो किचन में काम कर रही थी — दीप्ति, जो कि वहां की काफी पुरानी नौकरानी थी। उसकी उम्र लगभग 45 साल के आसपास लग रही थी।

असुर ने ऊंची आवाज़ में पुकारा —

"दीप्ति!"

जैसे ही असुर ने उसे आवाज़ लगाई, दीप्ति की आंखें बड़ी हो गईं क्योंकि उसने भी असुर की आवाज़ सुने बहुत वक्त हो चुका था। दीप्ति अब अपने तेज कदमों से किचन से बाहर निकली और असुर के सामने आकर खड़ी हुई। उसने सिर झुका कर कहा —

"जी साहेब... मैं आपके लिए क्या कर सकती हूं?"

असुर ने जो कहा, उसे सुनकर दीप्ति की आंखें बड़ी हो गईं, और अगले ही पल उसने सिर झुका कर हाँ में हिला दिया।

वहीं दूसरी तरफ, कमरे में कनिका अभी भी बेहोश पड़ी थी। तकरीबन आधा दिन ऐसे ही बीत गया। दोपहर के 1:00 बजे, कनिका को होश आने लगा। उसने आंखें खोलीं तो अगले ही पल उसके मुंह से "आह..." निकल गई, क्योंकि उसकी पूरी पीठ पर कांच धंसा हुआ था। उसके जख्म गहरे थे, पर खून सूख चुका था। कांच अभी भी कई जगहों पर धंसे हुए थे।

उसने अब अपने होठों को दांतों तले दबाते हुए धीरे से बिस्तर पर उठी और इधर-उधर देखने लगी। कमरे को देखकर कनिका की आंखें बड़ी हो गईं, क्योंकि वह इस कमरे को बहुत अच्छी तरह पहचानती थी। हालांकि उसे इस कमरे में आए बरसों हो गए थे, पर फिर भी वह इसे पहचान गई।

कनिका का दिल अब जोर-जोर से धड़क रहा था। वह धीरे-धीरे कमरे के दरवाजे तक पहुंची। जैसे ही उसने दरवाजे पर हाथ रखा, दरवाजा अपने आप खुल गया। सामने सर्वेंट खड़ी थी —

"मेमसाहब, आपको नीचे बुलाया जा रहा है..."

कनिका ने सिर हिला दिया, पर कुछ नहीं कहा।

वह धीरे-धीरे सीढ़ियों की ओर बढ़ी। जैसे ही वह सीढ़ियों पर पहुंची, नीचे का नज़ारा देखकर उसका दिल धड़कने से इनकार करने लगा। नीचे हर तरफ गद्दे बिछे थे, मर्द बैठे थे — सब अपनी मदहोश निगाहों से ऊपर आ रही कनिका को देख रहे थे।

बीच में एक बड़ा सा गद्दा लगा था, जिस पर खुद असुर बैठा हुआ था — हाथ में शराब का ग्लास, होठों से लगाए, और लाल आंखों से ऊपर खड़ी कनिका को देखता हुआ।

असुर ने ऊंची आवाज़ में कहा —

"क्या हुआ? पैरों में जंजीर बन गई है क्या? जल्दी नीचे आ, हमें नाच देखना है। और ये घुंघरू पैरों में बांध ले!"

इतना कहते हुए असुर ने हाथों में घुंघरू की पायल जो कि नचनिया पहनती थी, जमीन पर फेंक दी।

उसे देखकर कनिका की आंखों में आंसू भर आए। उसने आंखें झुका लीं और धीमे से बड़बड़ाई —

"आप बहुत बड़ा पाप कर रहे हैं बाबू... इश्क को कोठे में नीलाम करके..."

इतना कहते हुए वह धीमे कदमों से नीचे उतरने लगी। जैसे ही उसने कदम नीचे रखे, कुछ मर्दों ने सीढ़ियां बजानी शुरू कीं। असुर की आंखें एक पल के लिए सर्द हो गईं, पर अगले ही पल तिरछी मुस्कान के साथ उसने कनिका की तरफ देखा।

अब कनिका धीरे-धीरे आगे बढ़ी। कुछ ही देर में वह घेरे के बीच में आकर खड़ी हुई — चारों तरफ मर्द उसे गंदी नजरों से देख रहे थे। लेकिन कनिका की नजरें सिर्फ असुर पर थीं।

उसने कदम असुर की तरफ बढ़ाए।

असुर की आंखें ठंडी पड़ गईं, उसने जबड़े भींचते हुए कहा —

"तुझे नाचने को बोला है, मेरे पास आने को नहीं! चल, नाच!"

पर कनिका ने कुछ नहीं कहा। वह उसके पास जाकर एक घुटने के बल नीचे बैठी और उसकी आंखों में देखते हुए बोली —

"इतना सितम ढाकर, इतना जुल्म करके... आपके दिल में दर्द महसूस नहीं हो रहा है आपको? अरे पाप लगेगा बाबू, थोड़ा भला कर दीजिए... इन मर्दों को यहां से भेज दीजिए। हम आपके सामने तो नाच सकते हैं, पर इनके सामने नहीं..."

उसकी बात सुनते ही असुर की आंखें खून से लाल हो गईं। अगले ही पल उसने कनिका के बालों को पीछे से मुट्ठी में भर लिया और उसकी आंखों में आंखें डालते हुए बोला —

"ये सितम, ये जुल्म... अब उम्र भर तुझ पर चलेंगे! अगर ये पाप है, तो ऐसा पाप मैं रोज करूंगा! और रही बात भला करने की... मैं तो तेरा सत्यानाश करने आया हूं!"

इतना कहते हुए उसने कनिका को पीछे की तरफ धक्का दिया। कनिका मुंह के बल गिर गई, पर असुर को उस पर रत्ती भर भी तरस नहीं आया।

कनिका ने अब फिर से खुद को संभाला, ऊपर उठी, और असुर के पास जाकर झुककर उसके कान के पास धीरे से बोली —

"जो भी भला होना हो, वो आपका ही हो... आपको लगने वाले सारे पाप मुझे लग जाएं..."

उसकी आवाज़ में दर्द, तड़प, और एक गहरी हुक थी।

पर असुर पत्थर बन चुका था। उसने फिर कनिका के बालों को कसकर पकड़ा और दांत पीसते हुए बोला —

"तुझे नाचने को बोला है, अपनी दरियादिली दिखाने को नहीं! जितनी मर्जी दरिया दिली दिखा ले, मैं जानता हूं तेरी औकात कहां तक है! तू अब एक कोठी की नचनिया बनकर रहेगी — और मैं तुझे रोज तेरी औकात याद दिलाऊंगा! तूने मेरी जिंदगी बर्बाद की ना... अब मैं तेरी जिंदगी बर्बाद करूंगा!"

"तुझे भी पता चले कि असली तड़प, असली दर्द होता क्या है!"

जैसे ही असुर ने ये कहा, कनिका व्यंग्य से मुस्कुराई। उसकी मुस्कुराहट में एक अलग सा दर्द था। वह बोली —

"जितना दर्द देना चाहे दे लीजिए असुर बाबू... ये कनिका इश्क की इंतहा कर देगी..."

इतना कहते हुए कनिका अब अपनी जगह पर खड़ी हुई।

वह घेरे के बीच गई और घुंघरू को देखने लगी।

धीरे से झुकी, कांपते हुए हाथों से घुंघरू उठाए और उन्हें चेहरे के सामने करके देखा।

उन घुंघरुओं को देखकर उसके कलेजे में दर्द उठ रहा था। उसकी आंखें तो सूख चुकी थीं, लेकिन दिल बुरी तरह रो रहा था।

वहीं बैठे एक मर्द ने कहा —

"कहो तो मोहतरमा, हम पहना दें?"

इतना कहते हुए वो आदमी — विजय ठाकुर, जो करीब 26-27 साल का था, अपनी जगह से उठा और कनिका की तरफ बढ़ा। उसकी मदहोशी भरी नजरें कनिका की कमर पर थीं। वह होठों पर जीभ फेरते हुए बोला —

"लो दो मोहतरमा, हम पहना देते हैं... विजय ठाकुर कौन किसी से कम है?"

इतना कहते हुए वह कनिका के पास पहुंचा, उसका हाथ पकड़ने ही वाला था कि —

“धाँय!!”

गोली चलने की आवाज़ गूंजी।

वहां मौजूद हर शख्स का दिल धक्क से रह गया।

वहीं कनिका अपनी जगह पर जैसे जम गई थी।

To be continued...

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