
दिल्ली,
गाजियाबाद,
एक छोटे से चॉल में एक लड़की सुन होकर अपनी जगह पर बैठी हुई थी। उस लड़की का गोरा रंग, ऊपर से उसके चेहरे पर आई लाली, पतले सुर्ख लाल होंठ और ऊपर से रो-रो कर लाल हो चुकी भूरी आंखें जो अब सूख चुकी थीं। नाक में एक नोज रिंग जिसमें ब्लैक कलर के मोती थे। हाइट 5 फीट 3 इंच, और बाल कमर से भी नीचे आते हुए — वह लड़की कुल मिलाकर किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। इस वक्त वह अपने लहंगे में बैठी हुई थी और उसके सीने पर कोई दुपट्टा नहीं था, जिस वजह से उसका क्लीवेज साफ दिख रहा था। उसका दुपट्टा एक साइड पर गिर पड़ा था और इस वक्त उसकी आंखें पूरी तरह से सूनी पड़ी थीं। उसकी मां रोते हुए उसके कंधों को झकझोड़ते हुए बोली —
“क्यों रे कामाख्या, क्यों किया तूने ऐसा? अरे वह असुर है, असुर! तूने सोच भी कैसे लिया कि वह तुझे जिंदा छोड़ देगा! अरे, इश्क करता था तुझसे… और तूने ऐसा क्या कर दिया जो इतना गुस्सा है? अरे भाग जा यहां से! वह नहीं छोड़ेगा तुझे…”
उसकी मां लगातार चिल्लाए जा रही थी, पर वह लड़की बिना कुछ कहे सुन होकर अपनी जगह पर बैठी थी। उस लड़की की सूनी आंखें बहुत कुछ बयान कर रही थीं। तभी उसकी मां ने उसके चेहरे पर एक थप्पड़ झड़ते हुए कहा —
“तुझे सुनाई नहीं दे रहा? भाग जा यहां से! तुझे असुर नहीं छोड़ेगा! वह तेरा और नहीं रहा जो तुझसे इश्क करता था — वह राक्षस बन चुका है, राक्षस! तूने जो किया है, उसकी सजा तुझे जरूर देगा!”
अपनी मां की बात पर कामाख्या फीका सा मुस्कुराते हुए बोली —
“और उसकी सजा मुझे मिलनी जरूरी है मां… मैंने मेरे असुर को तोड़ दिया, तोड़ दिया मैंने मेरे असुर को मां… बहुत इश्क करता था वह मुझसे, और मैंने क्या किया — उसका विश्वास चकनाचूर कर दिया। मैं जानती हूं, मैंने गलती की है और इस गलती की सजा मुझे भुगतनी होगी मां…”
अभी वह अपनी मां से बात कर ही रही थी कि तभी उनके चॉल का दरवाजा जोर-जोर से बजने लगा।
जैसे ही दरवाजा बजा, कामाख्या की मां का दिल जोर-जोर से धक-धक करने लगा। वह और जोर से रोने लगी, और कामाख्या की तरफ देखते हुए बोली —
“भाग जा बेटी, भाग जा! वह नहीं तुझे छोड़ेगा, वह तेरा असुर नहीं है! तूने अपने असुर का गला खुद घोंट दिया आज रात को… अगर तू उसकी बहन के साथ…”
इतना कहते हुए कामाख्या की मां कुर्बानी जी वहीं पर चुप हो गई।
कामाख्या दर्द से भरी आवाज में बोली —
“मां, यही तो मेरी गलती है… और इसी चीज़ का भुगतान मुझे करना है। मुझे अपने असुर की तड़प को शांत करना है — जो शायद मैं कभी कर न पाऊं…”
इतना कहते हुए कामाख्या की आंखों से आंसू उसके गालों पर लुढ़क आए।
लेकिन इससे आगे वह कुछ कहती कि तभी जोर से दरवाजा टूटने की आवाज आई — और अगले ही पल बाहर से एक लंबा-चौड़ा लड़का, लगभग 6 फुट 3 इंच हाइट, ब्लैक कलर का कुर्ता-पजामा पहने हुए, अंदर आया। उसकी गहरी काली आंखें इस वक्त पूरी तरह से लाल थीं और बाल बिखरे हुए थे, लेकिन फिर भी वह इस हालत में एकदम कातिलाना लग रहा था। उसकी मस्कुलर बॉडी, सीने के तीन खुले बटन की वजह से साफ छलक रही थी। गर्दन पर बना बब्बर शेर का टैटू और भी ज्यादा कातिलाना लग रहा था। कान में पड़ा डायमंड का स्टड —
देखने से ही उस लड़के की पर्सनैलिटी दमदार लग रही थी। वह लड़का दरवाजे पर खड़ा अपनी सर्द नजरों से कामाख्या की तरफ देख रहा था और इस वक्त उसके जबड़े पूरी तरह से कसे हुए थे।
अगले ही पल वह लड़का आगे आया और देखते ही देखते कामाख्या के पास आकर उसने उसके बालों को पीछे से अपनी मुट्ठी में भर लिया। उसने इतनी क्रूरता से कामाख्या के बाल पकड़े कि वह एक पल के लिए तड़प उठी, उसके मुंह से “आह” निकल गई। उसे देखकर कामाख्या की आंखों में आंसू अब लबालब बहने लगे। वह तड़पते हुए उसे देख रही थी, पर उसके होठों से एक भी आवाज नहीं निकल रही थी।
वह असुर अब उसकी तरफ अपनी डेविल नजरों से देखते हुए पीछे से किसी को आवाज लगाता है —
“अजीत…”
जैसे ही असुर ने अजीत को बुलाया, अजीत बिल्कुल उसके सामने आकर सर झुकाकर खड़ा हो गया।
“सोना बाई को कॉल किया?”
जैसे ही असुर ने सोना बाई का नाम लिया, कामाख्या की मां कुर्बानी जी पूरी तरह से कांप उठीं। वह असुर के सामने हाथ जोड़ते हुए बोलीं —
“क्या कर रहे हो बेटा असुर! वह बच्ची है, गलती हो गई!”
तभी असुर बोला —
“मेरी बहन भी बच्ची ही थी!”
इतना कहते हुए उसने अपनी सर्द नजरों से कुर्बानी जी को देखा तो कुर्बानी वहीं चुप हो गईं।
वह फिर से हाथ जोड़कर बोलीं —
“बेटा, मैं तेरे आगे हाथ जोड़ती हूं, ऐसी जगह पर…”
अभी वह बोल ही रही थी कि असुर बोला —
“कोई और दरिंदा नहीं, आज से इसे मैं ही नोचूंगा।”
इतना कहते हुए असुर ने अपनी सर्द नजरों से कामाख्या की तरफ देखा। कामाख्या उसकी बात पर पूरी तरह से कांप गई। आज तक असुर ने कभी उसके साथ ऐसा नहीं किया था।
कुर्बानी जी बोलीं —
“अरे बेटा, तुम तो इसे इश्क करते हो ना? तो ऐसी बातें क्यों कर रहे हो? तुम जानते हो ना तुम किस जगह की बात कर रहे हो?”
तभी असुर बोला —
“वह असुर मर चुका है जिसने कभी इस लड़की से इश्क किया था।”
इतना कहते हुए उसने कामाख्या के बालों को और कसकर पकड़ा और घसीटते हुए बाहर की तरफ ले जाने लगा।
देखते ही देखते वह कामाख्या को घसीटते हुए बाहर की तरफ लेकर आया। बाहर काफी भीड़ लगी हुई थी जो असुर की गाड़ियों को देख रही थी। वहां लगभग 40 गाड़ियां खड़ी थीं, जिनमें से एक गाड़ी असुर की थी।
वह अब कामाख्या को घसीटते हुए अपनी गाड़ी तक लाया और अगले ही पल उसने उसे गाड़ी में धक्का दिया और खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। वहां खड़े सभी लोग कामाख्या और असुर को देख रहे थे। असुर का यह रूप देखकर सभी हैरान थे क्योंकि आज तक उसने कामाख्या के साथ ऐसा नहीं किया था।
असुर अब मिरर में से कामाख्या को देख रहा था, जो सूनी आंखों से मिरर में उसे देख रही थी। उसने अभी तक अपने होठों से कुछ नहीं कहा था। वही असुर भी जैसे पत्थर बन चुका था — उसने भी एक बार कुछ पूछना जरूरी नहीं समझा।
देखते ही देखते 15–20 मिनट में उनकी गाड़ी एक कोठे के आगे आकर रुकी। अगले ही पल असुर बाहर निकला, गाड़ी के दूसरी तरफ आया और कामाख्या के बालों को दोबारा अपनी मुट्ठी में भर खींचते हुए बाहर निकाला और कोठी के अंदर ले गया। अंदर जाकर उसने बीचोबीच कामाख्या को धक्का दे दिया।
सामने एक औरत बैठी थी, जो कम से कम 40–45 साल की थी। उसने साड़ी पहनी हुई थी और सामने झूले पर बैठी पान खा रही थी। उसकी आंखों में लबालब काजल भरा हुआ था। जैसे ही उसने असुर को देखा, उसके चेहरे पर बड़ी सी मुस्कराहट तैर गई।
वह औरत ताली बजाते हुए बोली —
“क्या बात है, क्या बात है! आज असुर सिंह पठानी हमारे यहां… क्या बात है पठानी साहब! अरे लड़की कौन है? बड़ा कड़क माल है! क्या बात है पठानी साहब, इस लड़की को यहां किसलिए लेकर आए हैं?”
असुर की नजर अब भी कामाख्या पर टिकी थी और कामाख्या की नजर असुर पर। कामाख्या ने एक पल के लिए भी असुर से कोई शिकायत नहीं की, कोई शब्द नहीं कहा।
असुर अपनी गहरी नजरों से कामाख्या की तरफ देखते हुए बोला —
“सोना बाई, इसे अपने कोठे पर नचा। जितना हो सके उतना नचा। और इस लड़की की रोज बोली लगनी चाहिए। इसका जिस्म हर रोज बिकना चाहिए, उसे भी पता चले कि जब किसी का बदन बिकता है तो कैसा लगता है… और यहां पर आने वाला हर मर्द…”
इतना कहते हुए असुर वहीं रुक गया। उसकी आंखें गहरी लाल होनी शुरू हो गईं। कामाख्या ने अपनी आंखें कसकर बंद कर लीं और अब उसकी आंखों से आंसू और भी ज्यादा बहने लगे।
तभी कामाख्या बोली —
“हर मर्द के साथ मेरा संबंध होगा, असुर बाबू?”
जैसे ही कामाख्या ने यह बात कही, अगले ही पल असुर ने उसके बालों को मुट्ठी में भरते हुए कहा —
“क्या बात है, बड़ी आग है तेरे बदन में। चल, आज तेरी आग को ठंडा करता हूं — पहले मुझसे शुरुआत कर ले।”
इतना कहते हुए उसने कामाख्या को बालों से पकड़ कर खड़ा किया। कामाख्या अब अंदर तक कांप गई। असुर उसे खींचता हुआ वहीं पर एक कमरे में ले गया और अगले ही पल उसे बेड पर पटक दिया, दरवाजे की कुंडी लगाकर उसकी तरफ घूम गया।
बाहर खड़ी सोनाबाई भी उनकी तरफ देखती रह गई। उसके अंदर भी असुर से बात करने की हिम्मत नहीं थी क्योंकि असुर वहां का जाना-माना गुंडा था।
अंदर असुर ने जैसे ही कामाख्या को बेड पर पकड़ा, कामाख्या का दिल जैसे उसके मुंह को आने को हो गया। वह नामें सिर हिलाते हुए पीछे की तरफ खिसकने लगी। उसे ऐसे खिसकता देख असुर के चेहरे पर डेविल स्माइल आ गई।
असुर अब अपनी डोमिनेटिंग वॉइस में बोला —
“आज तुझे पता चलेगा कि जब कोई किसी के बदन को नोचता है तो कैसा फील होता है।”
असुर की बात सुनकर कामाख्या का दिल जैसे वहीं पर रुक गया।
To be continued...









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