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Aamna samna

Antonio,

धानी के सामने इस वक्त एक लड़का खड़ा था जो उससे बातें कर रहा था।

वह लड़का धानी से मुस्कुराते हुए बोला —

"इन दो सालों में धानी, तुम बहुत बदल चुकी हो..."

उसकी बात पर धानी फीका-सा मुस्कुराते हुए बोली —

"कभी-कभी बदलना पड़ता है राहुल... और कभी-कभी हालात हमें बदलने पर मजबूर कर देते हैं..."

इतना कहते हुए उसकी आंखों में एक अनकहे जज़्बात थे, जो शायद राहुल भी समझ रहा था।

वहीं राहुल अब अपनी बात आगे जारी रखते हुए बोला —

"क्या तुम दोबारा मुंबई नहीं जाओगी?"

जैसे ही राहुल ने यह बात कही, अगले ही पल धानी के चेहरे पर अजीब से एक्सप्रेशन आ गए।

उसकी आंखें लाल होने लगीं... और उसकी आंखों के सामने एक फोन की वीडियो घूमने लगी।

उस वीडियो क्लिप को याद करते ही धानी के हाथों की मुट्ठियां कस गईं,

उसकी आंखों में अब हद से ज्यादा दर्द और गुस्सा था।

धानी के जबड़े पूरी तरह से भींच गए थे, और वह गुस्से में राहुल की तरफ देखकर बोली —

"अब मैं कहीं नहीं जाऊंगी... मुझे यहीं पर रहना है!"

अभी उसने इतना ही कहा था कि तभी पीछे से किसी की आवाज़ आई —

"ज़रूर बेटा... पर..."

यह शख्स कोई और नहीं, सौरभ जी थे, जो पिछले दो सालों से धानी के साथ एंटोनियो में शिफ्ट हो चुके थे।

सौरभ जी अब धानी के पास आकर खड़े हुए और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोले —

"बेटा, आखिर हुआ क्या है ऐसा जो तुम इतनी ज़्यादा दो सालों में बदल गई?

और तुम्हें पता है, वो तुम्हें ढूंढ रहा है अभी तक... उसका दिल ये तक मानने को तैयार नहीं कि तुम मर चुकी हो...

मैं कैसे कह दूं वो इंसान गलत है..."

धानी ने गहरी सांस लेते हुए कहा —

"दिल तो मेरा भी नहीं मानता था उनके बिना, पापा...

पर कभी-कभी आंखों देखे पर यकीन करना पड़ता है..."

इतना कहते हुए धानी की आंखों में नमी छा गई।

उसने सौरभ जी का हाथ अपने कंधे से हटाया और उनकी तरफ देखते हुए अपनी आंखों की नमी पोंछते हुए बोली —

"पापा, चाहे कुछ भी हो जाए... आपको ये सच छुपाना होगा।

मैं उसके पास अब दोबारा नहीं जाना चाहती।"

तभी सौरभ जी बोले —

"पर क्यों बेटा?"

"मैंने देखा है उसकी आंखों में तड़प, मैंने देखा है किस तरह से वो दो सालों से तुम्हारे लिए जी रहा है।

अभी एक महीने पहले मैंने उसे जिस हाल में देखा... मैं तुम्हें बता नहीं सकता।

अरे वो तो किसी और को देखता तक नहीं... वीरान, बंजर हो गया है वो तुम्हारे बिना..."

सौरभ जी की बात पर धानी व्यंग्य से मुस्कुराई और बोली —

"एक पल के लिए मुझे भी ऐसे भ्रम हुए थे, पापा, कि वो शख्स मुझसे प्यार करता है...

पर उसका प्यार एक छल था... जो तब पता चला जब मैं मौत के मुंह में थी..."

सौरभ जी गंभीर स्वर में बोले —

"तुमने इन दो सालों में मुझे बताया भी तो नहीं, आखिर ऐसा क्या देखा तुमने उसके बारे में,

जो तुम उससे इतनी ज़्यादा नफरत करने लगी?"

धानी ने उनकी आंखों में देखते हुए कहा —

"पापा, मैंने आपसे कितनी बार कहा है... मुझे बार-बार ये चीज मत पूछिए...

मैं नहीं बता पाऊंगी..."

इतना कहते हुए अब वह अंदर की तरफ चली गई।

वहीं राहुल और सौरभ जी एक-दूसरे की तरफ देखते ही रह गए।

पिछले दो सालों से सौरभ जी धानी के साथ ही रहते थे,

पर कभी-कभी वह मुंबई वापस जाते थे,

और जब वह मुंबई जाते थे तो कश्यप जी उन्हें किसी न किसी वजह से मेक्सिको भेज देते थे

ताकि वह मृत्युंजय का हाल पूछकर आ सकें —

क्योंकि मृत्युंजय उनके अलावा किसी से बात नहीं करता था।

उसने पिछले दो सालों से अपने घर तक कॉल नहीं किया था।

ना वह किसी से बोलता, ना कुछ कहता।

इन बीच सिर्फ सौरभ जी ही थे जो मृत्युंजय की हालत देख सकते थे —

एक महीना वह मृत्युंजय के पास रहते थे, तो चार महीने धानी के साथ।

सौरभ जी तो जैसे उन दोनों के बीच पीसकर रह गए थे —

एक तरफ उनसे मृत्युंजय की हालत नहीं देखी जाती थी,

तो दूसरी तरफ धानी की।

दोनों की हालत एक-दूसरे जैसी थी —

जहां मृत्युंजय हर वक्त अंधेरे में डूबा रहता था,

वहीं धानी भी कुछ कम नहीं थी।

वह भी हर वक्त अपने कमरे में खुद को बंद करके रखती थी।

बस एक वक्त आता था जब राहुल सुबह उसे जबरदस्ती एक्सरसाइज के लिए खींचकर ले जाता था।

इन दो सालों में धानी ने अपने आप को इस कदर अपने कमरे में बंद कर लिया था

कि वह ज्यादा किसी से बात नहीं करती थी,

जबकि राहुल पूरी कोशिश करता था कि वह बात करे।

राहुल अब कश्यप जी की तरफ देखते हुए बोला —

"मौसा जी, कब तक ये चीज चलती रहेगी...

जिस तरह से उसने अपने आप को कमरे में बंद कर लिया है,

मुझे तो डर लगता है कहीं कुछ हो ना जाए..."

कश्यप जी ने गहरी सांस ली और बोले —

"बहुत हिम्मत है उसमें...

उसे कोई गलतफहमी लगी है।

और अब ये गलतफहमी सिर्फ एक ही तरीके से दूर होगी...

जब ये दोनों आमने-सामने आएंगे।

और पता नहीं ये कब होगा...

क्योंकि धानी ने मुझे अपनी कसम दी है कि मैं उसका सच मृत्यु के सामने नहीं ला सकता..."

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वहीं दूसरी तरफ...

एंटोनियो के एक बड़े से लग्ज़रियस होटल — “ब्लैक शैडो” — के टॉप फ्लोर पर

एक शख्स खड़ा था, जो अपनी सूनी आंखों से बाहर की खिड़की देख रहा था।

उसकी आंखें पूरी तरह से खाली थीं।

तभी पीछे से एक आवाज़ उसके कानों में गूंजी —

"सर, मैं की लोकेशन यहां से आधे घंटे की दूरी पर शो हो रही है..."

जैसे ही आरव ने यह बात कही,

मृत्युंजय के होंठों के कोने हल्के से मुड़े।

अगले ही पल उसने बाहर देखा —

जहां बादल गरज रहे थे और बारिश तेजी से हो रही थी।

एंटोनियो में इस वक्त मौसम बहुत खराब था —

ठंडी हवाएं चल रही थीं, और बारिश ने सब कुछ भिगो दिया था।

मृत्युंजय अब गहरी आवाज़ में बोला —

"गाड़ी निकालो... अभी निकलना है।"

उसकी बात पर आरव हैरानी से बोला —

"पर सर, आप वहां पर..."

मृत्युंजय ने ठंडी आवाज़ में कहा —

"अभी आ रहा हूं... और अपनी औकात मत भूलो अपनी..."

उसकी बात पर आरव वहीं चुप हो गया और अगले ही पल वहां से निकल गया।

आरव के जाते ही मृत्युंजय की सर्द आवाज़ गूंजी —

"I’m coming, wifey...

आखिर ऐसा क्या हो गया जो तुम मुझे छोड़कर यहां पर रहने आ गई?"

इतना कहते हुए उसका चेहरा डार्क हो गया।

देखते ही देखते मृत्युंजय अब अपने कमरे से निकला,

सीधे ग्राउंड फ्लोर पर आया और अपनी गाड़ी में बैठ गया।

कुछ देर बाद उसकी गाड़ी सोंधी विला के आगे आकर रुकी —

वो विला राहुल का था, जो धानी की मासी का बेटा था।

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वहीं दूसरी तरफ, विला के अंदर काजल बेड पर लेटी हुई थी।

वह सूनी आंखों से सीलिंग को देख रही थी कि अचानक उसके दिल में अजीब सी बेचैनी होने लगी।

उसका दिल बहुत तेजी से धड़कने लगा —

उसने अपने दिल पर हाथ रखा, माथे पर सिलवटें पड़ीं और वह बड़बड़ाई —

"मुझे क्या हो रहा है..."

इतना कहते हुए वह बेड से उठी और सामने टेबल की तरफ बढ़ी,

जहां खिड़की के पास जग रखा हुआ था।

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वहीं बाहर...

तेज बारिश में मृत्युंजय अपनी गाड़ी से बाहर निकला।

बारिश इतनी तेजी से हो रही थी कि वहां कोई मामूली इंसान खड़ा नहीं रह सकता था,

पर मृत्युंजय बिना हिले-डुले बारिश में खड़ा था।

उसकी आंखें अब एक अजीब-सी आग उगल रही थीं —

जो शायद धानी को निगल जाने वाली थी।

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दूसरी तरफ धानी, जो अपने कदम टेबल की तरफ बढ़ा रही थी,

हर कदम के साथ उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी।

वह जग के पास पहुंची,

उसने उसमें से पानी डाला,

पर जैसे ही उसने गिलास होंठों तक लाया,

उसकी नजर खिड़की के बाहर गई —

और जैसे ही उसने बाहर देखा,

उसकी आंखें हद से ज्यादा बड़ी हो गईं

और उसका दिल धक् से रह गया...

उसके हाथों से गिलास नीचे गिर गया —

“छन्नnn...”

वहीं बाहर खड़ा मृत्युंजय जब धानी को देखता है,

तो उसके होठों के कोने फिर से हल्के से मुड़ जाते हैं।

इन दो सालों में मृत्युंजय बहुत बदल चुका था —

उसने

अपनी eyebrows पर कट बनवाए थे,

बालों में जेल लगाकर पीछे सेट किए हुए थे,

लॉन्ग कोट पहने बारिश में भीगा हुआ खड़ा था।

वहीं धानी अपनी जगह पर जैसे फ्रीज़ हो चुकी थी...

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To be continued...

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