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Talab

2 साल बाद…

Mexico,

रात का समय…

मेक्सिको की रात की जगमगाती हुई रोशनी में हर तरफ रात में ही दिन नज़र आ रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे हर तरफ गाड़ियों की रोशनी और लाइटों की चमक से शहर जगमगा उठा हो। जहां हद से ज़्यादा रोशनी बिखरी हुई थी वहीं एक तरफ, बड़ी सी बिल्डिंग के टॉप फ्लोर के एक लग्ज़रियस रूम में, एक शख्स ज़मीन पर लेटा हुआ था।

रूम की हर तरफ लाइट बंद थी, और रूम पूरी तरह अंधेरे में डूबा हुआ था। हर तरफ भारी परदे लगे हुए थे। बाहर से बस हल्की सी रोशनी उस शख्स पर पड़ रही थी।

वही शख्स ऊपर सीलिंग की तरफ देख रहा था। सीलिंग पर हर जगह एक लड़की की फोटो लगी हुई थी — वो लड़की बेहद खूबसूरत थी। उसकी तस्वीरें सीलिंग पर चमक रही थीं और उनकी हल्की रोशनी नीचे की तरफ पड़ रही थी।

वह शख्स बस एकटक उस लड़की की तस्वीर को निहार रहा था। ज़मीन पर उसके नीचे हर तरफ कांच बिखरा हुआ था। उन कांच के नुकीले टुकड़े उसकी पीठ में धंसे हुए थे, लेकिन उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था। उसकी लाल आंखें बस उस तस्वीर पर जमी थीं — उनमें हल्की नमी थी जो आंखों के कोनों से फिसलकर ज़मीन पर गिर रही थी।

हर तरफ फैला कांच यह साफ़ बता रहा था कि शराब की बोतलें तोड़ी गई हैं — यानी उसने हद से ज़्यादा शराब पी रखी थी।

वह शख्स अपनी गहरी आवाज़ में उस लड़की की तस्वीर को देखते हुए बोला —

"धोखेबाज़ हो तुम… तुम्हारा प्यार भी एक फ़रेब था। कोई इश्क़ नहीं था तुम्हें मुझसे…"

इतना कहते हुए वह शख्स अपनी जगह से उठा, पास में रखी वाइन की बोतल उठाई और अपने होंठों से लगा ली। फिर कांच पर चलते हुए बालकनी में जा खड़ा हुआ और बाहर का नज़ारा देखने लगा।

बाहर देखते हुए वह बोला —

"दो साल… हो गए… और मैं यह भी जानता हूं कि तुम ज़िंदा हो… अगर मेरी सांसें चल रही हैं तो तुम्हारी भी चल रही होंगी… बेशक मुझे कुछ और दिखाया गया हो, पर मैं तुम्हें ढूंढ कर रहूंगा…"

इतना कहते हुए मृत्युंजय के चेहरे पर डार्क एक्सप्रेशन उभर आए।

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वहीं दूसरी तरफ,

मुंबई,

Rathore Haveli,

संस्कृति जी इस वक्त बेड पर लेटी हुई थीं। उनके चेहरे को देखकर लग रहा था कि उनकी हालत बिल्कुल ठीक नहीं है — चेहरा सफेद पड़ चुका था, आंखों के नीचे गहरे गड्ढे थे, और वह हद से ज़्यादा कमजोर हो चुकी थीं। ऐसा लग रहा था जैसे वह काफी वक्त से बीमार हैं।

तभी कश्यप जी उनके पास आए। बगल में बैठते हुए उन्होंने संस्कृति जी की तरफ पानी का गिलास बढ़ाया और कहा —

"कब तक ऐसे ही चुप-चुप रहोगी? दो साल हो गए तुम्हें… ना किसी से बोलती हो, ना ढंग से खाती-पीती हो। क्या मिल जाएगा ऐसा करके? क्या तुम्हारा बेटा वापस आ जाएगा या फिर बहू ज़िंदा हो जाएगी?"

थोड़ा रुककर बोले —

"अरे, तुम लोग मान क्यों नहीं लेते कि वो मर चुकी है! कैंसर था उसे, वो भी लास्ट स्टेज… कैसे बच सकती थी? ना वो बेवकूफ़ जीत छोड़ने को तैयार है, और ना तुम! अरे, वो तो मरी हुई से भी नफरत कर रहा है अब…"

वहीं संस्कृति जी ने अपनी आंखें धीरे से खोलीं और कश्यप जी की तरफ देखते हुए अपनी कमजोर आवाज़ में बोलीं —

"अगर मेरे बेटे ने कहा है कि वो ज़िंदा है, तो वो ज़िंदा होगी। उसे आना होगा। मैं नहीं मान सकती कि वो मर गई… अगर मर गई तो उसकी लाश कहां है? मेरे बेटे ने खुद उसकी लाश ढूंढी थी, पर मिली नहीं। अगर उसकी बॉडी हमारे सामने होती तो मैं मान भी लेती… पर जब मैंने अपनी आंखों से देखा ही नहीं, तो मैं कैसे मान लूं? वैसे ही मेरा बेटा भी नहीं मानता!"

उनकी बात सुनकर कश्यप जी ने अपना हाथ सिर पर रख लिया। वहीं पीछे खड़े आदर्श की आंखों से भी आंसू निकल आए। वह अपनी लड़खड़ाती आवाज़ में बोला —

"मॉम… भाई जीते जी मर चुके हैं। उनकी रूह टूट चुकी है… इसलिए वो मानने को तैयार नहीं हैं। पर आप तो मान जाइए ना… अगर आप ही खुद को नहीं संभाल पाएंगी तो वो कैसे खुद को संभालेंगे?"

इतना सुनकर संस्कृति जी ने अपने दांत भींचे और बोलीं —

"बकवास बंद करो! वो ज़िंदा है तो मतलब ज़िंदा है!"

इतना कहकर उन्होंने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया और आंखें बंद कर लीं। उनकी हालत देखकर कश्यप जी की आंखों में भी आंसू आ गए और वे उठकर वहां से चले गए। वहीं आदर्श बस अपनी जगह पर खड़ा रह गया।

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Mexico,

Rathore J-Star Building,

बेसमेंट में…

मृत्युंजय इस वक्त कुर्सी पर बैठा हुआ था। उसकी लाल आंखें सामने देख रही थीं, जहां दो शख्स ड्रग डील कर रहे थे। पर मृत्युंजय पूरी तरह शांत था — सर पीछे टिकाए, आंखें बंद किए, जैसे किसी और दुनिया में खोया हुआ हो।

वो दोनों शख्स लगातार बात कर रहे थे, ड्रग्स की डील समझा रहे थे, लेकिन मृत्युंजय तो बस अपनी ही धुन में था।

तभी अचानक उसके कानों में फोन की घंटी बजी। उसने आंखें खोलीं और स्क्रीन की तरफ देखा — उसकी आंखें उसी पर जम गईं। अगले ही पल उसने फोन उठाया और कान से लगाते हुए बोला —

"Hmmm..."

दूसरी तरफ से आवाज़ आई —

"Boss, एक लड़की आपकी तरफ देखती नज़र आई है…"

यह सुनते ही मृत्युंजय बोला —

"जेट

"Jet ready करो… I will see her face."

इतना कहकर उसने फोन काट दिया और अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ। फिर उन दोनों डीलर्स की तरफ देखते हुए बोला —

"The meeting is over."

यह कहकर मृत्युंजय वहां से चला गया। दोनों शख्स बस एक-दूसरे को देखते रह गए — यह पहली बार था जब मृत्युंजय ने ड्रग डील की मीटिंग बीच में छोड़ दी थी।

वह तेज़ कदमों से टॉप फ्लोर पर पहुंचा और सीधे वॉशरूम में चला गया। कपड़े उतारकर शावर के नीचे खड़ा हो गया। उसकी आंखें बंद थीं — और आंखों के सामने बस धानी का चेहरा घूम रहा था।

उसकी गहरी आवाज़ में बस एक शब्द निकला —

"तुम ही हो… I know that…"

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दूसरी तरफ,

Antonio,

सुबह का वक्त…

एक बेहद खूबसूरत लड़की बालकनी में खड़ी एक्सरसाइज कर रही थी। उसने स्वीट सूट पहना हुआ था। उसके साथ एक शख्स भी था जो उसकी हेल्प कर रहा था — उसने भी वही ड्रेस पहनी हुई थी। दोनों मिलकर सुबह की एक्सरसाइज कर रहे थे।

तभी वह लड़का मुस्कुराते हुए बोला —

"धानी, इन दो सालों में तुम कितना बदल गई हो..."

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To be continued…

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