
एक हफ़्ते बाद...
अहाना इस वक्त डाइनिंग टेबल पर बैठी खाना खा रही थी और वह अपनी आंखें मटका कर अपने मॉम-डैड को देख रही थी जो कि एक-दूसरे की तरफ देखकर इशारे कर रहे थे। तभी अहाना चिढ़कर बोली,
"यह क्या? आप लोगों ने इशारों-इशारों में बात लगा रखी है! मुझे भी कोई कुछ बताएगा?"
जैसे ही अहाना ने यह कहा, सुहासिनी जी ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोला,
"वो बेटा, दो दिन और रुक जाती कॉलेज..."
अभी सुहासिनी जी ने इतना ही कहा था कि अहाना उनकी बात बीच में काटते हुए बोली,
"Ohhh प्लीज़ मॉम... अपना प्लीज़ टिपिकल हिंदी मॉम की तरह मत बन जाया करो! कॉलेज है, पढ़ाई छूट रही है मेरी। इतने दिनों से एक हफ़्ते में घर पर ही हूं और आप लोग मुझे इस तरह से ट्रीट कर रहे हैं जैसे मैं कोई छोटी बच्ची हूं। I’m 17 मॉम!"
इतना कहते हुए अहाना ने इतराते हुए अपने बालों को पीछे की तरफ किया।
वहीं अनुपम जी उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोले,
"It’s okay बेटा, बट फिर भी अपना ख्याल रखना... क्योंकि तुम्हारी तबीयत अभी भी ठीक नहीं हुई है।"
अनुपम जी की बात पर अहाना ने गहरी सांस लेकर कहा,
"डैड! जो मैं पूछती हूं वो आप लोग बताते नहीं हो, और इधर-उधर की बातें घूमते रहते हो। मेरे पैर में चोट लगी है, बस इसीलिए तो मैं व्हीलचेयर पर बैठी हूं। कुछ दिन की बात है, ठीक हो जाऊंगी।"
इतना कहकर अहाना ने अपनी व्हीलचेयर बाहर की तरफ घुमाई और धीरे-धीरे बाहर जाने लगी।
पर तभी दरवाजे से किसी कदमों की आवाज आई। जैसे ही सुहासिनी जी ने दरवाजे की तरफ देखा, उनकी आंखें गुस्से से लाल हो गईं और माथे पर बल पड़ गए। वहीं मिस्टर अनुपम जी, जो कि सामने की तरफ देखकर प्यारी मुस्कुराहट के साथ बोले,
"Welcome, Mr. Ranawat!"
अनुपम जी की बात पर रूद्र के चेहरे पर गहरी मुस्कराहट तैर गई और अगले ही पल उसने नज़र अहाना पर टिकाते हुए कहा,
"क्या आप ठीक हैं, मिस अहाना मलिक?"
जैसे ही रूद्र ने यह बात कही, अहाना ने रूद्र की तरफ देखकर मुंह बनाते हुए कहा,
"मैं तो ठीक हूं... और आपकी तशरीफ़? आप क्यों बार-बार यहां पर आ रहे हैं, मुझे बता सकते हैं? और आप यह रोज़-रोज़ हमारे घर पर आना-जाना क्यों रख रहे हैं?"
जैसे ही अहाना ने यह बात कही, रूद्र के चेहरे पर फीकी सी मुस्कुराहट तैर गई, जिसमें हल्का सा दर्द छलक रहा था — जो अनुपम जी साफ़ देख पा रहे थे।
रूद्राभ अहाना के व्हीलचेयर के पास आकर घुटनों के बल बैठते हुए उसकी आंखों में देखने लगा। वहीं अहाना का दिल इस वक्त ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। अपनी बेचैनी भरी आंखों से रूद्र की आंखों में देखते हुए बोली,
"अरे यह क्या तरीका है! और यह मत बोलिए कि आप मेरे प्रोफेसर हैं, सो आपको यह चीज़ शोभा नहीं देती!"
अहाना की बात पर रूद्र व्यंग्य से हंसते हुए बोला,
"शोभा तो किसी को यहां झूठ बोलना भी नहीं देता..."
यह सुन अहाना ने अपनी आंखें इधर-उधर घुमाते हुए कहा,
"यह कैसी बातें कर रहे हैं आप मेरे साथ... और वैसे भी मैं कॉलेज जा रही हूं, प्लीज़ पीछे हटिए!"
वहीं रूद्र अब अपनी जगह पर खड़ा हुआ और उसके गाल पर हाथ रखते हुए बोला,
"मैं तुम्हें ले चलूंगा।"
अहाना ने उसका हाथ झटकते हुए कहा,
"यह क्या ज़बरदस्ती है! और आप बार-बार क्यों मेरे नज़दीक आने की कोशिश करते हैं? जब रोज़ आप यहां पर आते हैं, तो मैं आपको बोलती हूं — मुझे टच मत कीजिए — तो फिर क्यों आप मुझे टच करते हैं बार-बार?"
पीछे से सुहासिनी जी की आवाज आई,
"यह क्या तरीका है, मिस्टर राणावत! आप हमारी बेटी को क्यों तंग कर रहे हैं? और हमारी बेटी का हाल-चाल पूछने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया, पर अब हमें आपकी कोई ज़रूरत नहीं है। आप अपने घर जा सकते हैं।"
अभी सुहासिनी जी बोल ही रही थीं कि तभी अनुपम जी ने उनके कंधे पर हाथ रखकर दबाया और अपनी गहरी आवाज में कहा,
"कैसी बातें कर रही हो, सुहासिनी..."
तभी सुहासिनी जी ने उनका हाथ झटकते हुए कहा,
"आप तो चुप ही कीजिए! और हमारी बेटी इसके साथ कहीं नहीं जाएगी!"
वहीं अहाना अब गहरी आवाज में बोली,
"मॉम, आपको मुझे बताने की ज़रूरत नहीं है! और वैसे भी मैं कॉलेज जा रही हूं, मुझे प्लीज़ डिस्टर्ब मत कीजिएगा!"
इतना कहकर उसने अपनी व्हीलचेयर को आगे बढ़ाया ही था कि तभी उसकी आंखें हैरत से फैल गईं — क्योंकि रूद्र ने अब उसे गोद में उठा लिया था और उसके कदम बाहर की तरफ बढ़ गए।
वहीं सुहासिनी जी उनकी तरफ बढ़ने को हुईं, पर अनुपम जी ने उनका हाथ कसकर पकड़ लिया और उन्हें अंदर खींचते हुए बोले,
"बस बहुत हुआ तुम्हारी मनमानी! एक हफ्ते से तुम्हारी मनमानी देख रहा हूं। वो प्यार करती है उससे — बस नाराज़ है, इसीलिए ड्रामा कर रही है भूलने का। मैंने उसकी आंखों में देखा है!"
इतना कहते हुए अनुपम जी सुहासिनी जी को अंदर की तरफ खींचते हुए ले गए। वहीं सुहासिनी जी ने अपना हाथ झटकते हुए कहा,
"दिमाग खराब हो गया है आपका! उसकी वजह से मेरी बेटी कोठी में बंद हो गई थी, और उसकी आज जो हालत है ना, उसकी वजह भी वही है!"
तभी अनुपम जी अपनी गहरी आवाज में बोले,
"Don’t cross your limit, सुहासिनी!"
जैसे ही अनुपम जी ने यह बात कही, सुहासिनी जी का दिल धक-सा रह गया, क्योंकि आज तक अनुपम जी ने उनके साथ इतने ऊंचे स्वर में बात नहीं की थी। अब उनकी आंखों में नमी तैर गई और देखते ही देखते वह अपने कमरे की ओर चली गईं।
वहीं सुहासिनी जी के जाने से अनुपम जी ने अपनी आंखें कसकर बंद कर लीं और अपने हाथों की मुट्ठियां भींच लीं — कहीं ना कहीं वह सुहासिनी से ऐसी बात नहीं करना चाहते थे, पर उनकी जिद ने उन्हें ऐसा बोलने पर मजबूर कर दिया।
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वहीं दूसरी तरफ...
रूद्र अहाना को लेकर अपनी गाड़ी की ओर बढ़ रहा था। अहाना ने उसकी तरफ देखते हुए दांत पीसकर कहा,
"आप ऐसी हरकत नहीं कर सकते! Put me down, मिस्टर राणावत!"
जैसे ही उसने यह कहा, रूद्र के चेहरे पर तिरछी मुस्कुराहट तैर गई और वह अहाना के कान के पास झुकते हुए बोला,
"हरकतें तो अब मैं तुम्हें फार्महाउस में जाकर बताऊंगा... कि कैसी-कैसी होती हैं!"
जैसे ही रूद्र ने यह बात कही, अहाना का दिल जैसे थम-सा गया। कुछ ही देर में रूद्र ने उसे गाड़ी में बिठाया और उनकी गाड़ी राणावत फार्महाउस की तरफ चल पड़ी।
गाड़ी में अहाना दांत पीसकर बोली,
"मुझे कॉलेज जाना है! मेरी पढ़ाई का नुकसान हो रहा है... और आप होते कौन हैं मुझे किसी अनजान जगह ले जाने वाले?"
तभी रूद्र ने एकदम गहरी आवाज में कहा,
"बताता हूं ना... पहले घर तो पहुंच जाओ।"
उसने इतना ही कहा था कि अहाना बस उसकी तरफ देखते ही रह गई। उसका दिल इस वक्त ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था, जिसकी आवाज़ रूद्र तक भी पहुंच रही थी।
तकरीबन आधे घंटे बाद उनकी गाड़ी राणावत फार्महाउस के आगे आकर रुकी।
फार्महाउस को देखते ही अहाना की आंखें बेचैन हो उठीं और उसने अपने दिल पर हाथ रख लिया — क्योंकि इस वक्त उसका
दिल ट्रेन की स्पीड से दौड़ रहा था। वहीं यह सब देखकर रूद्र के चेहरे पर गहरी मुस्कराहट तैर गई।
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To be continued...









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