
हाईवे पर...
मृत्युंजय की कार इस वक्त हाईवे पर तेजी से दौड़ रही थी। उसकी आँखें इस वक्त हद से ज्यादा लाल थीं और आँखों के सामने बस धानी का ही चेहरा घूम रहा था। बार-बार धानी का उसकी पहचान से इनकार करना जैसे उसके दिल की धड़कनों को बेकरार कर रहा था।
तभी एक झटके से उसने अपनी कार के ब्रेक लगाए। जैसे ही कार की ब्रेक लगी, वहाँ चारों तरफ कार के टायर्स की आवाज गूंज उठी। इस वक्त मृत्युंजय इतनी तेज़ गाड़ी चला रहा था कि जैसे ही उसने ब्रेक लगाई, एक्सीडेंट भी हो सकता था... कार पलट भी सकती थी। लेकिन फिर भी उसने अपनी कार पर पूरी तरह से कंट्रोल रखा हुआ था।
अगले ही पल, मृत्युंजय गाड़ी से बाहर निकला और बैक सीट से दो अल्कोहल की बोतलें निकालीं। एक बोतल को उसने पीछे ही रख दिया और दूसरी को खोलकर अपने होठों से लगा लिया। होठों से लगाते हुए ही मृत्युंजय अपनी गाड़ी के फ्रंट बेस पर आकर बैठ गया और वहीं पर लेटे हुए आसमान की तरफ देखकर शराब पीने लगा।
उसकी आँखें इस वक्त हद से ज्यादा लाल थीं, पर वह रो नहीं रहा था। कुछ था... जैसे कोई गहरा समुद्र जो उसकी आँखों के अंदर सिमटा हुआ था, पर बाहर नहीं आ रहा था... या फिर मृत्युंजय उसे बाहर आने ही नहीं दे रहा था।
उसने दोबारा से शराब को होठों से लगाया और एक बार व्यंग्य से हँसते हुए, आसमान की तरफ देखकर जोर से चिल्लाया –
> "क्यों........ Always why me.....?"
इतना कहते हुए मृत्युंजय की आवाज़ में दर्द हद से ज्यादा था। उसकी आवाज़ काँप रही थी –
> "पहले मॉम, फिर दादा... और आज...."
इतना कहकर मृत्युंजय के होठों पर खामोशी छा गई। जैसे उसका इकरार उसके होठों पर आते-आते ही रुक गया हो।
पर मृत्युंजय अब आसमान की तरफ देखकर एक बार फिर से डेविल एक्सप्रेशन के साथ बोला –
> "पर नहीं... नॉट दिस टाइम... वह सिर्फ मेरी है! और उसे ले जाने का हक मैंने तुम्हें भी नहीं दिया!"
इतना कहते हुए मृत्युंजय अपनी उंगली आसमान की तरफ पॉइंट कर रहा था, और फिर से ऊँची आवाज़ में चिल्लाया –
> "मैं तुम्हें उसे ले जाने नहीं दूँगा!
तुम मुझे मेरा सब कुछ नहीं छीन सकते!
हर बार तुमने मेरा सब कुछ छीना – माँ, बाप... सब कुछ छीना तुमने!
पर फिर भी मैं आज तक कुछ नहीं कहा!
पर आज... उसे नहीं छीन सकते!! वह सिर्फ मेरी है!!!"
> "इसके लिए मुझे दुनिया में आग क्यों ना लगानी पड़े, मैं लगा दूँगा!"
> "भूल गई है ना वो मुझे?
कोई बात नहीं, मैं याद दिलाऊँगा उसे!
वो इश्क़ करती है मुझसे...
कहीं ना कहीं, उसके दिल के कोने में मैं ज़िंदा ही रहूँगा
चाहे जितना मर्ज़ी वो मुझे भूल जाए..."
इतना कहते हुए मृत्युंजय की आवाज़ में दर्द चीख-चीख कर गवाही दे रहा था कि वो किस तरह से धानी के लिए तड़प रहा है।
मृत्युंजय लगातार वहीं कार पर बैठा ड्रिंक किए जा रहा था, और ऊपर आसमान की तरफ देखकर ऊँची-ऊँची आवाज़ में बातें कर रहा था। इस वक्त मृत्युंजय खुद में ही पूरी तरह टूटा हुआ नजर आ रहा था... उसका दिल इस वक्त बुरी तरह से टूट रहा था।
कहीं ना कहीं वो रोना चाहता था, पर उसने खुद को मजबूत बनाए रखा।
वह आसमान की तरफ देखकर बोला –
> "तू मुझे रुला नहीं सकता!
जितनी मर्जी कोशिश कर ले!!
वो मेरी है!!
इश्क़ किया है उसने मुझसे!!
वो मुझे छोड़कर नहीं जाएगी इतनी आसानी से...
मुझे खुद से ज़्यादा भरोसा उसे पर है... उसकी साँसों पर है!
उसकी साँसों पर सिर्फ मेरा हक है – सिर्फ और सिर्फ मेरा!"
इतना कहते हुए अब उसके चेहरे पर तिरछी एक्सप्रेशन आ गई और अगले ही पल... उसके चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था कि उसके दिमाग में इस वक्त बहुत कुछ चल रहा हो।
कुछ ही देर में मृत्युंजय वहाँ से गाड़ी लेकर निकल गया और इस वक्त वह बहुत ज़्यादा मिस्टीरियस लग रहा था...
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वहीं दूसरी तरफ… Heartbeat Hospital में…
धानी इस वक्त बेड पर जैसे बेजान सी लेटी हुई थी और उसकी आँखें इस वक्त पूरी तरह से सीलिंग पर लगी हुई थीं। ऐसा लग रहा था जैसे उसके अंदर जीने की चाह ही ना बची हो।
आँखों में आँसू सूख चुके थे, पर फिर भी अंदर शायद एक छोटी सी किरण बाकी थी कि काश... उसकी मौत के दिन रुक जाएँ।
वहीं बाहर खड़े सौरभ जी और कश्यप जी भी यह सब देख रहे थे। उन्हें भी धानी का दर्द अंदर तक महसूस हो रहा था।
और संस्कृति, वह एक्साइड पर खड़ी होकर मुँह पर हाथ रखकर फूट-फूट कर रो रही थी।
कश्यप जी अब संस्कृति के पास गए और उन्होंने संस्कृति के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा –
> "अगर तुम ही ऐसे करोगी, तो उस बच्ची का क्या हाल होगा?
बहुत कम वक्त है उसके पास... उसके साथ वक्त बिताओ..."
संस्कृति अब कश्यप जी के गले लगते हुए बोली –
> "कुछ कीजिए मिस्टर राठौर!
अगर उसे कुछ हो गया... तो मैं जी नहीं पाऊँगी!
मृत्युंजय ने बहुत कुछ खोया है अपनी ज़िंदगी में – अपनी माँ, अपने पापा...
भले ही हमने उसे माँ-बाप की कमी महसूस नहीं होने दी
पर आज भी वह यह चीज़ महसूस करता है।
उसकी वो सूनी आँखें आज भी अपना दर्द बयां करती हैं..."
> "अगर इस बार धानी को कुछ हो गया, तो वो जीते-जी मर जाएगा
और हो सकता है... वो खुद को संभाल भी ना पाए!"
अब कश्यप जी ने संस्कृति के चेहरे को अपने हाथों में लेकर उसकी आँखों में देखते हुए कहा –
> "ऐसा कुछ नहीं होगा।
वह बहुत ज्यादा मजबूत है, जैसे उसका बाप मजबूत था
वैसे ही वह भी मजबूत है।
और इतनी जल्दी वह हार नहीं मान सकता।
और शायद… जितना हो सके,
धानी का फैसला सही है –
उसे अब मृत्युंजय से दूर रखना होगा।
क्योंकि अगर धानी को कुछ हो गया,
तो मृत्युंजय ये चीज बर्दाश्त नहीं कर पाएगा।
और ये चीज मैंने उसकी आँखों में देखी है..."
इतना कहकर उन्होंने संस्कृति के सिर पर हाथ रखा और धानी के पास जाने का इशारा किया।
अब सौरभ जी और कश्यप जी आपस में दोबारा से बात करने लगे और संस्कृति ने अपने कदम धानी के वार्ड की तरफ बढ़ा दिए।
पर जैसे ही उन्होंने कदम धानी के वार्ड के अंदर रखे और सामने का नज़ारा देखा...
संस्कृति का दिल धक से रह गया, क्योंकि सामने इस वक्त कोई भी नहीं था।
बेड पूरी तरह से खाली पड़ा हुआ था!!
संस्कृति की साँस गले में अटक गई, और उनकी जोरदार चीख उस वार्ड में गूंज गई!
वहीं बाहर खड़े सौरभ और कश्यप जी ने भी संस्कृति की चीख सुनी। जिसे सुनकर उनकी भी साँसें अटक गईं और वे भी दौड़ते हुए वार्ड की तरफ भागे। और जब उन्होंने भी अंदर का नज़ारा देखा, उनका भी दिल दहल गया।
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वहीं दूसरी तरफ... हाईवे पर…
एक लग्ज़रियस गाड़ी, जिसमें धानी पिछली सीट पर बेहोशी की
हालत में पड़ी हुई थी, और फ्रंट मिरर से कोई उसे देख रहा था…
और वह गाड़ी सड़क के बीचों-बीच तेज रफ्तार से दौड़ रही थी…
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To be continued...
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