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Memory

New Zealand,

Heartbeat Hospital,

धानी इस वक्त बेड पर बेजान-सी लेटी हुई थी और सामने डॉक्टर उसे चेक कर रहे थे। अभी थोड़ी देर पहले धानी फिर से बेहोश हो चुकी थी। डॉक्टर इस समय धानी को सिरिंज वगैरह लगा रहे थे।

वहीं मृत्युंजय का दिल यह सब देख-देखकर जोर-जोर से धक-धक कर रहा था। मृत्युंजय को ऐसा लग रहा था जैसे इस वक्त उसे खुद सांस लेने में दिक्कत हो रही हो। डॉक्टर जैसे ही धानी के अंदर सिरिंज इंटर करते हैं, तभी मृत्युंजय अपनी आंखें कसकर बंद कर लेता है और उसके मुंह से सिसक निकल जाती है।

मृत्युंजय के चेहरे से साफ पता चल रहा था जैसे सिरिंज धानी को लग रही थी पर दर्द उसे हो रहा था। वहीं बाहर खड़े सौरभ जी, कश्यप जी और संस्कृति जी की आंखों में भी नमी तैर रही थी क्योंकि इस वक्त हालात बहुत ज्यादा नाजुक थे।

कुछ देर बाद डॉक्टर ने धानी को सिरिंज लगाकर दोबारा से इलाज शुरू कर दिया। सारी रात धानी के ब्लड को रीसायकल किया जा रहा था। अब सुबह होने वाली थी लेकिन डॉक्टर अभी तक धानी के आसपास ही थे।

जहां डॉक्टर काम कर रहे थे वहीं मृत्युंजय भी एक पल के लिए नहीं सोया था, वह लगातार धानी पर नज़रें गड़ाए खड़ा था। मृत्युंजय की आंखें इस वक्त हद से ज्यादा लाल थीं। वहीं कश्यप जी, संस्कृति जी और सौरभ जी एमरजेंसी रूम में जाकर रेस्ट के लिए लेट गए थे, लेकिन मृत्युंजय ने एक पल भी आराम नहीं किया।

सारी रात धानी को होश नहीं आया था जिस वजह से मृत्युंजय की बेचैनी और बढ़ गई थी। डॉक्टर भी मृत्युंजय की तरफ देखकर डर रहे थे क्योंकि मृत्युंजय के भाव अब बदलने लगे थे। उसके हाथों की मुठ्ठियां कसने लगी थीं और माथे की नसें तनने लगी थीं।

ऐसे ही आधा दिन बीत गया। मृत्युंजय को अब हद से ज्यादा गुस्सा आने लगा क्योंकि धानी को कल रात से अब तक होश नहीं आया था। मृत्युंजय धानी को उम्मीद भरी आंखों से देख रहा था कि कब वह उसे “मिस्टर राठौर” कहकर पुकारेगी। लेकिन धानी का चेहरा इस वक्त पूरी तरह पीला पड़ चुका था और होंठ बेजान हो चुके थे।

एक घंटा और बीत गया। अब मृत्युंजय की हद पार हो चुकी थी। वह अगले ही पल डॉक्टर की तरफ बढ़ने ही वाला था कि तभी धानी की आंखें फड़फड़ाईं और उसके मुंह से कुछ निकला जो साफ-साफ मृत्युंजय के कानों में नहीं पड़ा।

पर अगले ही पल धानी ने अपनी बात दोहराई। इस बार मृत्युंजय को थोड़ा अजीब लगा क्योंकि धानी इस वक्त अपने पापा सौरभ जी का नाम दोहरा रही थी।

वहीं बाहर दरवाजे पर खड़े सौरभ जी को यह बात नहीं पता चली क्योंकि दरवाजे की वजह से उन्हें धानी की आवाज नहीं सुनाई दे रही थी। पर इतना उन्हें भी पता चल गया था कि धानी को होश आने लगा है क्योंकि उसकी आंखें फड़फड़ा रही थीं।

तकरीबन 2 मिनट बाद धानी ने अपनी आंखें खोलना शुरू किया। जैसे ही धानी ने आंखें खोली उसकी आंखों के सामने धुंधलापन छा गया। फिर उसने आंखें बंद करके दोबारा खोलीं तो इस बार उसकी नजर सीधे सामने खड़े मृत्युंजय पर पड़ी।

एक पल के लिए धानी उसे बिना नजर हटाए देखती रही। पर अगले ही पल उसने जो कहा उसे सुनकर मृत्युंजय का दिल धक-सा रह गया।

धानी (धीमी आवाज में):

“जी… आप कौन?”

वहीं डॉक्टर भी धानी को देख रहे थे। धानी के चेहरे पर इस वक्त कोई खास भाव नहीं थे। मृत्युंजय अब जैसे अपनी जगह पर जम गया था।

क्योंकि डॉक्टर ने थोड़ी देर पहले जो कहा था वही बात दोबारा हो रही थी और इस बार धानी के चेहरे से ही पता चल रहा था कि वह सच में मृत्युंजय को नहीं पहचान रही।

धानी के फेस के एक्सप्रेशन बिल्कुल नॉर्मल थे जैसे वह कभी मृत्युंजय से मिली ही ना हो।

धानी (थोड़ी तेज आवाज में):

“आप कौन हैं? और मेरे पापा कहां हैं? पापा… और मैं यहां पर कैसे आई? मैं तो घर पर थी ना…”

जैसे ही धानी ने यह बात कही डॉक्टर और मृत्युंजय दोनों एक-दूसरे को देखने लगे। मृत्युंजय की आंखें इस वक्त हद से ज्यादा लाल थीं और उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।

धानी का उसे ना पहचानना मृत्युंजय के दिल में अजीब-सा दर्द दे रहा था जिससे उसके दिल से हूक उठ रही थी।

अब मृत्युंजय धानी की बातें बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। वह उसके पास आकर उसके गालों पर हाथ रखने ही वाला था कि तभी धानी ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसकी आंखों में देखते हुए बोली —

धानी (गुस्से में):

“यह क्या बदतमीजी है? आप मुझे ऐसे हाथ लगाने की क्यों कोशिश कर रहे हैं? और मेरे पापा कहां हैं? मैं कब से बोले जा रही हूं कि मेरे पापा कहां हैं… आपको सुनाई नहीं दे रहा?”

जैसे ही धानी ने मृत्युंजय का हाथ पकड़ा और आंखों में आंखें मिलाकर यह बात कही मृत्युंजय का सारा भरम वहीं खत्म हो गया।

उसे समझ आ गया कि धानी सच में उसे अब नहीं पहचानती। दिल में कहीं न कहीं उम्मीद थी कि शायद धानी उसे पहचान लेगी पर इस बार सच में धानी ने उसे नहीं पहचाना।

मृत्युंजय का दिल बुरी तरह से टूट रहा था। वहीं बाहर खड़े सौरभ जी और कश्यप जी ने यह देखा तो उनका भी दिल पसीज गया। उन्हें मृत्युंजय के लिए बहुत ज्यादा बुरा लग रहा था पर अब वे कर भी क्या सकते थे।

मृत्युंजय एक बार फिर से उसके गाल पर हाथ रखने को हुआ कि डॉक्टर ने उन्हें हाथ दिखाते हुए कहा —

डॉक्टर:

“देखिए मिस्टर राठौर, आपकी वाइफ की हालत अभी ठीक नहीं है। प्लीज, उन्हें अकेला छोड़ दीजिए…”

जैसे ही डॉक्टर ने यह बात कही धानी हैरानी से डॉक्टर को देखते हुए बोली —

धानी (हैरान होकर):

“क्या मतलब है? मैं इनकी वाइफ हूं? और यह हैं कौन? और मेरी शादी कब हुई इनसे?”

अब सब हैरानी से डॉक्टर को देख रहे थे। वहीं मृत्युंजय अब यह सारी बात समझ चुका था। उसने एक नजर धानी की तरफ देखा और अपनी हाथों की मुठ्ठियां कसते हुए वहां से निकल गया।

मृत्युंजय के दिल में इस वक्त तूफान चल रहा था। उसकी आंखें उसके दिल का दर्द बयां कर रही थीं पर वह उस दर्द को अपने अंदर समेटना चाहता था, जो समेट नहीं पा रहा था।

आज पहली बार ऐसा हो रहा था कि मृत्युंजय खुद को संभाल नहीं पा रहा था। उसके मन में एक तूफान उठ रहा था।

देखते ही देखते मृत्युंजय अस्पताल से बाहर आया और अपनी गाड़ी में बैठकर वहां से निकल गया।

वहीं दूसरी तरफ…

सौरभ जी, कश्यप जी और संस्कृति जी इस वक्त धानी के सामने खड़े थे। धानी अपनी आंखें झुकाए बिस्तर पर बैठी थी।

सौरभ जी उसे गौर से देख रहे थे और अगले ही पल उसके पास आकर उसके गालों पर हाथ रखकर बोले —

सौरभ जी (नरमी से):

“तूने क्या किया बेटी…?”

सौरभ जी ने इतना ही कहा था कि धानी अब फूट-फूट कर रोने लगी।

धानी (कांपती आवाज में):

“तो क्या करती पापा… उन्हें टूटते हुए मैं नहीं देख सकती। आज नहीं तो कल मेरा तो अंत होना ही है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो

वह खुद को भी बर्बाद कर लेंगे… और अब मुझे उनसे दूर होना ही होगा…”

To be continued…

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