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Unlimited pain/clot

New Zealand,

Heartbeat hospital,

अभी-अभी धानी बेहोशी से उठी थी क्योंकि कुछ देर पहले उसने खून की उल्टियां की थी और जिस वजह से वह बेहोश हो गई थी। डॉक्टर ने उसे ब्लडिंग रीसायकल की मशीन लगा दी थी जिससे उसका खून दोबारा से चेंज होना शुरू हो गया था और कुछ देर पहले ही उसका अबॉर्शन हुआ था। अब जब धानी उठकर सामने मृत्युंजय को देखती है तो वह पूरी तरह से पैनिक कर रही थी और मृत्युंजय को देखकर उसे पहचानने से इनकार कर रही थी।

वहीं मृत्युंजय अपनी जगह खड़ा-खड़ा फ्रिज हो चुका था। उसका दिल इस वक्त धड़कने से इनकार कर रहा था क्योंकि पहले भी अभी थोड़ी देर पहले यही चीज धानी ने दोहराई थी और अब फिर से उसने मृत्युंजय को पहचानने से इनकार कर दिया।

“मैं तुम्हें नहीं पहचानती।”

इतना कहते ही मृत्युंजय को अपने अंदर कुछ टूटता हुआ महसूस हुआ।

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Teri Meri, Meri Teri Prem Kahani Hai Mushqil

Do Lafzoon Mein Yeh Bayaan Na Ho Paaye

Ek Ladka Ek Ladki Ki Yeh Kahani Hai Nayi

Do Lafzoon Mein Yeh Bayaan Na Ho Paaye

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उसने अपने कदम पीछे की तरफ लेने शुरू कर दिए। मृत्युंजय को पीछे जाता देखकर धानी ने एक बार उसकी तरफ देखा और अगले ही पल अपना मुंह दूसरी तरफ फेर लिया। उसकी आंखों में नमी थी। यानी कि धानी यह सब भूलने का दिखावा कर रही थी और मृत्युंजय को खुद से दूर करना चाहती थी।

लेकिन ना चाहते हुए भी वह मृत्युंजय की तरफ देखने से खुद को रोक नहीं पा रही थी। वहीं मृत्युंजय तो जैसे अपनी जगह पर फ्रिज होकर पीछे जाता जा रहा था और अचानक से जाकर दीवार से टकरा गया।

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Teri Meri, Meri Teri Prem Kahani Hai Mushqil

Do Lafzon Mein Yeh Bayaan Na Ho Paaye

Ek Dooje Se Huye Juda Jab Ek Dooje Ke Liye Bane

Teri Meri, Meri Teri Prem Kahani Hai Mushqil

Do Lafzon Mein Yeh Bayaan Na Ho Paaye

Aaa...

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जैसे ही मृत्युंजय दीवार से टकराया, अगले ही पल उसने घूमकर दीवार पर एक जोरदार पंच मारा। अचानक दीवार में दरार आ गई। मृत्युंजय को खुद को दर्द देता देख धानी का दिल अंदर तक कांप उठा। पर अगले ही पल उसने खुद को कठोर किया और चेहरा दूसरी तरफ फेर लिया।

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Tumse Dil Jo Lagaya To Jahaan Maine Paaya

Kabhi Socha Na Tha Yun Meelon Door Hoga Saaya

Kyun Khuda Tune Mujhe Aisa Khwaab Dikhaya

Jab Haqiqat Mein Usey Todna Tha

Aa....

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मृत्युंजय अब लगातार दीवार पर पंच मार रहा था। वहीं धानी जो खुद को बहुत ज्यादा कंट्रोल कर रही थी, वह ना चाहते हुए भी अपनी जगह से उठी और अगले ही पल उसने पीछे से मृत्युंजय को गले से लगा लिया।

“मत कीजिए रे मिस्टर राठौर... मत कीजिए... छोड़ दीजिए मुझे...” — वह रोते हुए बोली।

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Ek Dooje Se Huye Judaa, Jab Ek Dooje Ke Liye Bane

Teri Meri, Meri Teri Prem Kahani Hai Mushqil

Do Lafzon Mein Yeh Bayaan Na Ho Paaye

Teri Meri Baaton Ka Har Lamha

Sab Se Anjaana, Do Lafzoon Mein Yeh

Bayaan Na Ho Paaye

Har Ehsaas Mein Tu Hai

Har Ik Yaad Mein Tera Afsaana

Do Lafzon Mein Yeh Bayaan Na Ho Paaye

Aaaa...

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तभी मृत्युंजय पीछे की तरफ घूमा। उसकी लाल आंखें सीधे धानी की आंखों से टकराई। उसने उसका चेहरा अपने हाथों में भरते हुए कहा—

“तुम ऐसा क्यों कर रही हो? क्यों कर रही हो ऐसा? क्या चाहती हो तुम? कि मैं तुम्हें छोड़ दूं? अब ऐसा कभी नहीं हो सकता। खुद तुम्हारी तो जान जाएगी ही... मेरी भी साथ में जाएगी।”

मृत्युंजय की बात सुनकर धानी का दिल धक्का सा रह गया। अगले ही पल वह होश में आई क्योंकि असल में यह सब वह ख्वाब देख रही थी। हकीकत में उसकी हिम्मत नहीं थी कि वह मृत्युंजय को गले से लगाए। वह बस यह चाहती थी कि मृत्युंजय को संभालते हुए देखे, पर उनके बीच नजदीकियां न बने।

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Sara Din Bit Jaaye, Saari Raat Jagaye

Bas Khayal Tumhara Lamha Lamha Tadpaye

Yeh Tadap Keh Rahi Hai Mit Jaaye Faasle

Yeh Tere Mere Darmayaan Hai Jo Saare

Ek Dooje Se Huye Juda Jab Ek Dooje Ke Liye Bane

Teri Meri Baaton Ka Har Lamha Sab Se Anjaana

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मृत्युंजय का हाथ अब लगातार दीवार पर चोट खाते-खाते बुरी तरह लहूलुहान हो चुका था। धानी अपने आप को पत्थर की तरह बनाए बैठी थी। उसका दिल मृत्युंजय को देखकर तड़प रहा था, पर वह कुछ नहीं कर सकती थी सिवाय अपनी आंखों से आंसू बहाने के।

अचानक मृत्युंजय उसकी तरफ आया। उसने दोनों कंधों को पकड़कर झकझोरते हुए कहा—

“मेरी आंखों में देखकर बोलो... कि तुम मुझे नहीं पहचानती हो!”

मृत्युंजय की हालत देखकर धानी का दिल एक पल को पिघल गया। उसने किसी तरह अपने आंसुओं को रोकते हुए कहा—

“छोड़िए हमें... यह क्या तरीका है किसी से बात करने का? और आप हैं कौन?”

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Teri Meri Baaton Ka Har Lamha Sab Se Anjaana

Do Lafzon Mein Yeh Bayaan Na Ho Paaye

Har Ehsaas Mein Tu Hai

Har Ek Yaad Mein Tera Afsaana

Do Lafzon Mein Yeh Bayaan Na Ho Paaye

Teri Meri, Meri Teri Prem Kahani Hai Mushqil

Do Lafzoon Mein Yeh Bayaan Na Ho Paaye,,,,

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जैसे ही धानी ने यह कहा, मृत्युंजय ने उसके कंधों पर अपनी पकड़ ढीली कर दी। उसके चेहरे पर दर्द भरी मुस्कान तैर गई। उसकी आंखें लाल थीं, लेकिन वह व्यंग्य से हंसते हुए बोला—

“अरे... झूठ तो सही तरह से बोल लेती।”

इतना कहते ही उसने पास रखी टेबल को जमीन पर पटक दिया। धमाके की आवाज से धानी के कानों पर हाथ चले गए और वह अंदर तक कांप उठी।

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Teri Meri, Meri Teri Prem Kahani Hai Mushqil

Do Lafzon Mein Yeh Bayaan Na Ho Paaye

Aa..........

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इतना कहकर मृत्युंजय बाहर निकल गया। अस्पताल से सीधे अपनी गाड़ी में बैठा और तेजी से निकल पड़ा। उसकी हालत को धानी अच्छे से जानती थी। उसके दिल में भी एक हूक उठ रही थी कि वह मृत्युंजय को रोक ले। पर उसने खुद को रोका क्योंकि वह मृत्युंजय को अपने करीब नहीं आने देना चाहती थी। वह बस थोड़े समय तक उसके साथ जीना चाहती थी, पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।

दूसरी तरफ मृत्युंजय की कार न्यूज़ीलैंड की सड़कों पर तेजी से दौड़ रही थी। उसके दिल में तूफान मचा हुआ था। रात के 1:30 बजे, सुनसान पहाड़ी इलाके पर उसकी कार अचानक रुकी। उसकी आंखों में जैसे दुनिया जहां का दर्द उतर आया और अगले ही पल उसने अपना लहूलुहान हाथ कार के हॉर्न पर दे मारा और जोर से चीखा—

“क्यो.... क्यों किया तुमने धानी ऐसा क्यों....!!”

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Heartbeat Hospital,,

धानी इस वक्त बेड पर गुमसुम बैठी हुई थी और उसकी आंखों के सामने मृत्युंजय का चेहरा घूम रहा था। जब कुछ देर पहले मृत्युंजय अपने हाथ को बुरी तरह से दीवार में मार रहा था तो उसका दिल धक्का सा रह गया था। वह अंदर ही अंदर मृत्युंजय को रोकने के लिए तड़प रही थी पर रोक नहीं पा रही थी और अब भी उसका कुछ ऐसा ही हाल था। एक तरह से वह गुमसुम ही बैठी हुई थी। इस वक्त उसके दिमाग और दिल में जद्दोजहद चल रही थी। एक तरफ दिल मृत्युंजय की तरफ तड़प रहा था और दूसरी तरफ दिमाग मृत्युंजय से दूर होने की गवाही दे रहा था।

पर ज्यादा देर वह अपने दिमाग से लड़ नहीं पाई और फूट-फूट कर वहीं पर रोने लगी। और खुद में ही रोते-रोते बिस्तर पर लेट गई और खुद से बातें करने लगी –

"गलती मेरी है श्री राठौर... सब पता होते हुए भी मैं आपसे इश्क कर बैठी। अरे इस दिल में दगाबाजी उतर आई आपके लिए। जब जानती थी कि यह चीज आज नहीं तो कल होनी है, तो क्यों आपसे इश्क कर बैठी, क्यों थोड़ी देर के लिए ही लालची हो गई...!"

इतना कहते हुए धानी फूट-फूट कर रोने लगी।

पर तभी धानी के वार्ड का दरवाजा खुला और सामने से एक बॉडीगार्ड आया। उसने धानी के हाथों में फोन पकड़ा दिया। वही धानी सवालिया एक्सप्रेशन से बॉडीगार्ड की तरफ देखने लगी। पर बॉडीगार्ड ने उसके सवालिया नजरों को इग्नोर करते हुए अपना सिर नीचे की तरफ झुका लिया।

लेकिन अगले ही पल जब उसने फोन पर जो वीडियो देखी, उसके पूरी तरह से होश उड़ गए और अगले ही पल उसके हाथ से फोन फिसल कर नीचे गिर गया। और तुरंत ही धानी ने जो मशीन इस वक्त उससे लगी हुई थी, वह अपने हाथों से वैसे ही निकाल दी जिससे उसके हाथों में बुरी तरह से लहू बहने लगा। इस वक्त धानी सुधबुध खो बैठी थी और अपने बिस्तर से उठकर बाहर की तरफ भाग गई।

वही बॉडीगार्ड तो जैसे पहले ही जानता था कि क्या होने वाला है और डॉक्टर भी धानी को रोकने की कोशिश कर रहे थे पर बॉडीगार्ड ने उन्हें हाथ दिखाकर रोक दिया।

कुछ ही देर में धानी बिना सोचे समझे भागते हुए बाहर की तरफ आई और उसके सामने एक कार रुकी। हालांकि कुछ देर पहले धानी में उठने तक की जान नहीं थी पर पता नहीं ऐसा क्या धानी ने देख लिया था कि अचानक ही उसकी टांगों में जैसे जान आ गई हो। उसका दिल इस वक्त धड़कने से इनकार कर रहा था। वह जल्दी से उस कार में बैठी और वहां से निकल गई।

वहीं दूसरी तरफ जो बॉडीगार्ड फोन लेकर धानी के पास आया था, उसने अगले ही पल किसी को फोन लगाया और बात करते-करते अपनी कार में बैठकर वहां से निकल गया।

वही कार जो धानी को लेकर गई थी, तकरीबन 15-20 मिनट बाद एक सुनसान से इलाके पर जाकर रुकी। धानी को तो ऐसा लग रहा था जैसे उसका दिल उसके कलेजे से बाहर आ जाएगा। किसी तरह से वह अपने कदमों को लड़खड़ाने से रोक रही थी पर फिर भी उसके कदम हर बढ़ते पल के साथ लड़खड़ा रहे थे। धीरे-धीरे वह कार से उतरी और वहां पर एक और कार खड़ी थी, उसकी तरफ जाने लगी।

धानी का चेहरा पूरी तरह से सफेद पड़ चुका था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके बदन में जान ही न हो। पर जैसे-जैसे वह गाड़ी के पास जा रही थी वैसे-वैसे उसके कदम आगे बढ़ने से इनकार कर रहे थे। पर फिर भी वह किसी तरह से अपने कांपते हुए पैरों से हिम्मत जताकर आगे बढ़ रही थी।

पर अगले ही पल जैसे ही उसने सामने का नजारा देखा उसकी रूह कांप गई।

क्योंकि इस वक्त मृत्युंजय नीचे जमीन पर लहूलुहान लेटा हुआ था और उसकी आंखें पूरी तरह से बंद थीं। वह गाड़ी के नीचे की तरफ दबा हुआ था, बस टायर कुछ कदम पीछे हुए पड़े थे। ऐसा लग रहा था किसी ने मृत्युंजय को बुरी तरह से कार के नीचे रौंद दिया हो।

धानी का दिल जैसे धड़कने से इनकार करने लगा। उसकी सांसें और भी ज्यादा गहरी होने लगीं और उसकी आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा। पर किसी तरह उसने खुद को संभाला और अपने भारी कदमों से आगे बढ़ते हुए अपने मुंह में बड़बड़ाई –

"नहीं... आप ऐसा नहीं कर सकते! आप मुझे छोड़कर नहीं जा सकते... आपको कोई हक़ नहीं बनता मुझे छोड़ने का... ऐसे आप मुझे अकेला छोड़कर नहीं जा सकते..."

उसकी सांस इस वक्त फूलने लगी थी, पर फिर भी वह एक बात मन ही मन दोहराए जा रही थी –

"आप मुझे छोड़कर नहीं जा सकते...!"

ऐसा ही कहते-कहते धानी मृत्युंजय की बॉडी के बिल्कुल पास आकर बैठ गई और उसके चेहरे को अपने हाथों में भरते हुए जोर से चिल्लाई –

"उठिए!! कहा ना उठिए!! मैं जानती हूं आप ऐसे ही मुझे छोड़कर नहीं जा सकते। अरे... मैं मरने की कगार पर हूं... मुझे आपका कंधा चाहिए था... मैं मर जाऊंगी आपके बिना। उठ जाइए!! मैं वैसे भी जिंदगी जीना भूल चुकी हूं...!"

इतना कहते हुए धानी लगातार चीखती जा रही थी, पर शायद ही मृत्युंजय उसकी बात सुन पा रहा था... या फिर कुछ और।

धानी लगातार चीखती रही पर मृत्युंजय टस से मस नहीं हुआ। वह अपनी फूलती हुई सांसों से बोली –

"आप मुझे अगर छोड़कर जाएंगे तो मैं भी जी नहीं पाऊंगी। ऐसी जिंदगी का फायदा ही क्या! 2 महीने की जिंदगी रह गई थी... अब वह भी नहीं जीनी। अगर आप नहीं... तो मैं भी नहीं...!"

"आंखें खोलो!! मैं जानती हूं आपको कोई नहीं छू सकता... आपको ऐसी कोई मार नहीं सकता...!"

इतना कहते हुए वह फूट-फूट कर बेकाबू होकर रोने लगी।

जब 15-20 मिनट तक धानी यूं ही चीखती-चिल्लाती रही पर मृत्युंजय टस से मस न हुआ, तब धानी ने हार मानकर खड़ी हुई और मृत्युंजय की बैग से गन निकाल ली।

अगले ही पल वह अपनी जगह पर खड़ी हुई। उसकी आंखें सूनी पड़ चुकी थीं। ऐसा लग रहा था कि वह जीते जी मर गई हो। उसकी वह सूनी आंखें अगर कोई देख लेता तो दर्द से तड़पकर उसका भी रोना निकल जाता।

अगले ही पल धानी ने मृत्युंजय की तरफ देखकर कहा –

"आपके लिए जीना चाहती थी... यह छोटी सी जिंदगी सिर्फ आपके लिए जीना चाहती थी... पर अगर आप ही नहीं हैं तो यह थोड़े से पल भी जीकर क्या करूंगी...!"

इतना कहते हुए उसने अपना हाथ बेधड़क ऊपर की तरफ उठाया और गन अपने माथे पर पॉइंट कर ली।

और अगले ही पल वहां पर –

"चटाक...."

धानी का चेहरा दूसरी तरफ लुढ़क गया था और उसके हाथों में पड़ी हुई गन भी नीचे जमीन पर जा गिरी।

वही मृत्युंजय अब गुस्से से कांपता हुआ धानी को देख रहा था और दांत पीसकर बोला –

"अगर झूठ सहने की हिम्मत नहीं हो तो करना भी नहीं चाहिए... क्या कहा था तुमने? पहचानती नहीं हूं मुझको...? अरे मेरे बिना सांस लेना नहीं जानती तुम! मैं जानता हूं कि कितना इश्क किया है तुमने... तुम्हारी आंखों में देखा है मैंने... और तुम्हें क्या लगा यह तुम्हारा छोटा सा झूठ, यह बात कि तुम मुझे पहचान नहीं रही... क्या मैं मान जाऊंगा? क्या सोचकर तुमने यह झूठ बोला...? एक छोटी सी बीमारी से हार मानकर तुम अपने इश्क को कुर्बान करने चली थी...?"

वही धानी जो अपने गाल पर हाथ रखे हुई थी, उसका चेहरा अभी भी दूसरी तरफ लुढ़का हुआ था। उसके चेहरे पर अब एक छोटी सी मुस्कुराहट आ गई और आंखों में नमी भर आई। अगले ही पल वह सीधी हुई और मृत्युंजय के गले लगकर सिसक-सिसक कर रोने लगी।

मृत्युंजय के गले लगे हुए रोते हुए बोली –

"मैं आपको खोना नहीं चाहती... मेरी तो जिंदगी है ही कुछ दिनों की..."

धानी ने इतना ही कहा था कि मृत्युंजय ने उसके बालों में ग्रिप बनाकर उसका चेहरा ऊपर की तरफ करते हुए कहा –

"खबरदार... मेरे सामने ऐसी बात की तो...!"

और अगले ही पल मृत्युंजय ने उसके गालों को अपने हाथों में भरते हुए उसकी आंखों में देखते हुए कहा –

"भरोसा है मुझ पर?"

धानी अब उसकी आंखों में देखते हुए बोली –

"खुद से भी ज्यादा..."

उसके मुंह से इतना ही सुनकर मृत्युंजय के दिल को सुकून मिल गया। और अगले ही पल उसने धानी को अपनी गोद में उठाते हुए गहरी आवाज़ में कहा –

"तो बस... फिर तुम्हें मेरे लिए इस बीमारी से लड़ना होगा और तुम जीतोगी...!"

इतना कहते हुए मृत्युंजय गाड़ी की तरफ बढ़ गया। पर अगले ही पल धानी उसकी आंखों में देखते हुए बोली –

"पर मेरी एक शर्त है... अगर मैं इस बीमारी से लड़ते-लड़ते हार गई... तो वादा कीजिए आप अपने साथ कुछ नहीं करेंगे..."

धानी की बात सुनकर मृत्युंजय के कदम वहीं रुक गए और उसकी नज़रें गहरी होकर धानी पर टिक गईं। और वह गहरी आवाज़ में बोला –

"तुम्हें सुनाई नहीं दिया...? तुम्हें इससे लड़ना होगा... समझी...!"

मृत्युंजय ने इतना ही कहा था कि धानी ने उसके होठों पर अपने होंठ रख दिए और प्यार से उसके होठों को चूमने लगी।

वही मृत्युंजय को जैसे ही धानी के होंठों का स्पर्श मिला उसके होंठ हल्के-हल्के कोनों से मुड़ गए। कुछ देर धानी इसी तरह मृत्युंजय को किस करती रही। वही मृत्युंजय भी उसके होंठों को अपने होंठों पर महसूस कर अपनी आंखें बंद किए खड़ा रहा।

इस वक्त हालांकि धानी उसकी गोद में थी, फिर भी वह बड़े प्यार से मृत्युंजय के गालों को अपने हाथों में भरकर उसके होंठों को चूम रही थी।

मृत्युंजय को चूमते हुए ही उसकी आंखों का पानी मृत्युंजय के गालों पर आ गया था।

जब धानी के गालों पर मृत्युंजय की आंखों का पानी आया तो वह मृत्युंजय के गालों को भी छूने लगी।

यह देखकर मृत्युंजय ने अपनी आंखें खोलकर धानी को देखा जो पागलों की तरह रोते हुए उसे चूम रही थी। धानी की ऐसी हालत देखकर मृत्युंजय का दिल एक पल के लिए तड़प उठा।

उसने अब किस को ब्रेक करते हुए अपना चेहरा पीछे किया और धानी की तरफ देखते हुए बोला –

"खबरदार अगर एक भी आंसू बहाए तो... तुम्हारी जान ले लूंगा यहीं पर...!"

मृत्युंजय की बात सुनकर एक पल के लिए धानी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और अगले ही पल वह बड़े प्यार से उसके गालों को अपने हाथ में भरते हुए बोली –

"ले लीजिए मिस्टर राठौर... यह भी आप ही की है...!"

इतना कहते हुए उसने अपना सिर मृत्युंजय के सीने पर रख लिया और अपने हाथ कसकर उसके गले में बांध दिए।

वहीं मृत्युंजय बस उसके चेहरे की तरफ देखता ही रह गया। पर उसके चेहरे पर अब गहरे एक्सप्रेशन आ गए थे जैसे उसके मन में अब कुछ चल रहा हो।

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कुछ ही वक्त में...

मृत्युंजय धानी को लेकर हार्टबीट हॉस्पिटल में पहुंचा। जैसे ही उन दोनों ने कदम धानी के वार्ड में रखा और धानी ने सामने का नजारा देखा तो उसकी आंखें हैरान रह गईं...

Heartbeat hospital,

अभी-अभी मृत्युंजय धानी को अपनी गोद में उठाकर बाहर से अंदर की तरफ ला रहा था और जैसे ही वह धानी के वार्ड की तरफ पहुंचे और दोनों ने अपने कदम अंदर रखे, अगले ही पल धानी का दिल धक सा रह गया। सामने का नज़ारा देखकर उसकी आंखों में नमी तैर गई। वहीं मृत्युंजय लगातार उसके चेहरे की तरफ ही देख रहा था। धानी का दिल इस वक्त जैसे अपनी जगह पर ही नहीं था क्योंकि सामने उसके पिताजी सौरव खड़े थे और वह अपनी नम आंखों से धानी को देख रहे थे।

मृत्युंजय ने अब धानी को अपनी गोद से उतारा। जैसे ही उसने धानी को छोड़ा, धानी आगे की तरफ बढ़ने लगी तभी सौरव जी उसके पास आए। इससे पहले कि सौरव जी धानी को गले लगाते, मृत्युंजय बीच में खड़े होकर बोला –

“दूर से बात कीजिए। ये गले लगने वाला सिस्टम मुझे पसंद नहीं है।”

मृत्युंजय की बात सुनकर धानी की आंखें हैरत से फैल गईं। वह हैरानी से मृत्युंजय का चेहरा देखने लगी। वही मृत्युंजय एक आईब्रो चढ़ाकर उसकी तरफ देखते हुए बोला –

“तुम्हें कोई प्रॉब्लम है इससे?”

मृत्युंजय की बात सुनकर एक पल के लिए सौरव जी के चेहरे पर मुस्कराहट तैर गई और अगले ही पल सौरव जी मृत्युंजय की तरफ देखकर बोले –

“नहीं बेटा, कोई बात नहीं। मैं ऐसे ही बात कर लेता हूं।”

तभी धानी मृत्युंजय की तरफ देखकर बोली –

“कैसी बातें कर रहे हैं आप मिस्टर राठौर, ये मेरे पापा हैं वो….”

मृत्युंजय एक बार फिर उसकी तरफ घूमते हुए बोला –

“तो तुम्हारे पापा हैं तो तुम गले लग जाओगी?”

मृत्युंजय की जलन देखकर एक पल के लिए धानी को भी हंसी आ गई, पर फिर भी उसने खुद को कंट्रोल करते हुए बोली –

“प्लीज़ मिस्टर राठौर, ऐसा मत कीजिए।”

मृत्युंजय अब बिना किसी एक्सप्रेशन के बोला –

“नहीं मतलब नहीं… गले लगना है तो मुझे लगा लो, आ जाओ।”

उसकी बात पर धानी के चेहरे पर लाली छा गई और उसने अपनी आंखें झुकाते हुए इधर-उधर देखने लगी। वहीं सौरव जी को तो हंसी आ ही गई। उन्होंने धानी के करीब होकर उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा –

“कोई बात नहीं बेटा, अब जो है तुम्हारा यही है, कोई बात नहीं।”

तभी पीछे से कश्यप जी की आवाज़ आई –

“क्यों नहीं होगा भाई, अगर ये पति बन गया है तो क्या इसका पिता बेटी से उसका गोद छीन लेगा क्या? इससे पहले वो तुम्हारी बेटी है, लगाओ गले।”

कश्यप जी की आवाज़ सुनकर मृत्युंजय उन्हें सर्द नजरों से देखते हुए बोला –

“आप यहां पर भाषण देने आए हैं क्या? Because इस वक्त मैं भाषण सुनने के मूड में नहीं हूं। और हां, होते होंगे पहले इनके पिता, पर अब वो सिर्फ मेरी है।”

इतना कहते हुए मृत्युंजय के चेहरे पर बेहद सीरियस एक्सप्रेशन थे और उसकी सीरियसनेस देखकर धानी के चेहरे पर छोटी सी मुस्कराहट तैर गई। कहीं ना कहीं आज मृत्युंजय बहुत प्यारा लग रहा था।

कश्यप जी अब एक बार फिर से उसकी तरफ घूमते हुए बोले –

“तो तुम्हारी पत्नी है, पर उनकी भी बेटी है।”

इतना कहकर उन्होंने सौरव जी का हाथ पकड़ा और जैसे ही धानी के करीब लाने को हुए, इससे पहले कि वह धानी को हाथ लगाते, मृत्युंजय ने दोबारा से धानी को गोद में उठाते हुए कहा –

“अगर ऐसा ही चला तो मैं इसे लेकर किसी और कंट्री में उठ जाऊंगा, और तुम लोग जब भी आओ पप्पियां करते रहना आपस में।”

मृत्युंजय की बात सुनकर वहां पर सभी की आंखें हैरत से फैल गईं। वहीं संस्कृति, जो अभी-अभी दरवाजे पर आकर खड़ी हुई थी, उसकी तो हंसी ही छूट गई। हालांकि खतरा अभी टला नहीं था, पर फिर भी सौरव जी के आने से धानी को बहुत सुकून मिला था। और सौरव जी आए भी मृत्युंजय के कहने पर ही थे, क्योंकि कहीं ना कहीं मृत्युंजय जानता था कि धानी सौरव जी को देखकर बहुत खुश होगी और इस वक्त उसकी खुशी बहुत ज्यादा मायने रखती थी।

वहीं सौरव जी अब मृत्युंजय की तरफ देखकर हाथ जोड़ते हुए बोले –

“नहीं दामाद जी, हमेशा कुछ नहीं करने वाले हैं। कोई बात नहीं, बिटिया आपकी ही है, आप रखिए।”

इतना कहते हुए वह अपनी नम आंखों से धानी को देखने लगे। वहीं धानी की आंखों में भी नमी छा गई।

जैसे ही मृत्युंजय ने धानी की आंखें नम देखीं, अगले ही पल दांत पीसकर बोला –

“अपनी ये तसूआ बहाना बंद करो। मुझे तुम पर गुस्सा आता है ये चीज़ देखकर। तुम्हारा ये तसूआ मेरा दिमाग खराब कर देता है। छोटी-सी बात हुई नहीं कि तसूआ बहाने लग जाती हो।”

मृत्युंजय ने अब धानी की तरफ देखा, जो अभी भी उसकी गोद में थी। और अब उसने अपनी आंखें पूरी तरह से साफ कर ली थीं, क्योंकि वह मृत्युंजय से और डांट नहीं खाना चाहती थी। मृत्युंजय ने अब धानी को ले जाकर सामने बेड पर लिटा दिया और कुछ ही देर में उसका इलाज दोबारा शुरू कर दिया गया।

भले ही अभी सभी हंस रहे थे, पर कहीं ना कहीं सबके अंदर डर बसा हुआ था कि पता नहीं कल क्या होने वाला है। डॉक्टर सपना इलाज कर रही थीं। कुछ ही देर में डॉक्टर ने धानी को दूसरे वार्ड में शिफ्ट कर दिया क्योंकि फिलहाल के लिए धानी सुरक्षित हो चुकी थी।

पर एक बात और डॉक्टर के दिमाग में घूम रही थी, जो बहुत ज्यादा सीरियस थी। उन्होंने मृत्युंजय की तरफ परेशानी भरी निगाहों से देखते हुए कहा –

“मिस्टर राठौर, हमें आपसे कुछ बात करनी है।”

जैसे ही डॉक्टर ने यह कहा, मृत्युंजय की आंखों में सख्ती छा गई। डॉक्टर भी यह पहचान गए, पर उन्होंने फिर भी कहा –

“मिस्टर राठौर, बात बहुत ज़रूरी है और आपकी वाइफ को लेकर है।”

उसकी बात सुनकर मृत्युंजय की हाथों की मुट्ठियां कस गईं, क्योंकि जो वह सुनना नहीं चाहता था, वही बात हो रही थी।

डॉक्टर अपनी बात कहकर अब अपनी केबिन में चले गए। वहीं मृत्युंजय अपनी जगह पर जमा खड़ा हुआ था। उसका दिल इस वक्त जोर-जोर से धड़क रहा था। न चाहते हुए भी उसने अपने कदम डॉक्टर की केबिन की ओर बढ़ा दिए। वहीं सौरव जी और कश्यप जी भी यह सब नोटिस कर रहे थे। कहीं ना कहीं दोनों जानते थे कि मृत्युंजय के लिए इस वक्त हालात बहुत मुश्किल थे।

मृत्युंजय डॉक्टर के केबिन के बाहर आकर खड़ा हुआ और अगले ही पल उसने दरवाज़ा खोलकर अंदर कदम रखा और डॉक्टर के सामने जाकर बैठ गया। मृत्युंजय को देखकर एक पल के लिए डॉक्टर ने सहमी हुई नज़रों से उसकी तरफ देखा, पर अगले ही पल उन्होंने हिम्मत जताकर गहरी सांस भरकर मृत्युंजय की तरफ देखते हुए कहा –

“मिस्टर राठौर, अभी के लिए फिलहाल Mrs. राठौर सुरक्षित हैं, पर कल का कुछ कहा नहीं जा सकता। पर एक और बात Mrs. राठौर की बाहर निकलकर आ रही है…”

और अगले ही पल जो डॉक्टर ने कहा, उसे सुनकर मृत्युंजय की आंखें बड़ी हो गईं और उसका दिल धक सा रह गया। उसे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उसके प्राण उसके शरीर से बाहर निकाल लिए हों।

डॉक्टर मृत्युंजय की तरफ देखकर बोले –

“धीरे-धीरे वो अपनी मेमोरी खो रही हैं और हो सकता है बहुत जल्द वो आपको भूल जाएं।”

डॉक्टर के इतना कहते ही मृत्युंजय की पकड़ टेबल पर कस गई और उसका दिल इस वक्त धड़कने से इनकार करने लगा। न चाहते हुए भी उसकी आंखों में आज हल्की-सी नमी दिखाई दे रही थी। जो इंसान हमेशा पत्थर की तरह जड़ खड़ा रहता था, आज उसकी आंखों में नमी लिए खड़ा था।

वहीं डॉक्टर ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा –

“मिस्टर राठौर, खुद को संभालिए। आपकी वाइफ अभी बहुत क्रिटिकल हैं। फिलहाल उनकी हालत स्टेबल है, पर पता नहीं कल को क्या होगा। हम डॉक्टर भी यह बात नहीं बता सकते। Because ब्लड कैंसर तो उन्हें है ही और एक और चीज़ जो सबसे सीरियस है – उनके दिमाग में एक ब्लड क्लॉट है, जिस वजह से उनकी मेमोरी जा रही है।”

अब तो मृत्युंजय जैसे अपनी जगह पर जम ही गया। सच में धानी उसे एक पल के लिए भूल चुकी थी। जब वह समझ रहा था कि धानी उसे भूल नहीं सकती, तब सच में धानी की याददाश्त थोड़ी देर के लिए जा चुकी थी।

मृत्युंजय को अपने दिल में एक अलग सा दर्द महसूस हो रहा था। उसने अपना हाथ अपने दिल पर रखते हुए वहीं चेयर पर बैठ गया। उसकी सांस इस वक्त बेहद गहरी चल रही थी।

लेकिन तभी केबिन का दरवाज़ा खुला और कश्यप जी अंदर आते हुए बोले –

“धानी फिर से बेहोश हो गई है।”

और इसी के साथ मृत्युंजय की सांस वहीं पर थम गई…

अगले ही पल मृत्युंजय और डॉक्टर जल्दी से धानी के वार्ड की तरफ भागे…

To be continue…

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