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Dagabaaz dil

राठौर फार्म हाउस

अभी-अभी मृत्युंजय धानी को लेकर छत पर आया था और सामने का नज़ारा देखकर धानी का दिल एक पल के लिए रुक-सा गया था। क्योंकि सामने ही छत पर पूरे शीशे का एक रूम बना हुआ था और उस रूम में वाइट कलर के परदे लगे हुए थे और नीचे ही सफेद बिस्तर भी बिछा हुआ था। ऊपर से उस शीशे के रूम पर छोटा सा फाउंटेन लगा हुआ था, जिससे निकलता पानी पूरे कांच से होकर नीचे आ रहा था। वह छोटा सा कांच का रूम इतना खूबसूरत लग रहा था कि धानी की आंखों में चमक आ गई थी।

उसे एक पल को ऐसा लगा मानो वह कोई सपना देख रही हो। इस वक्त उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। दूसरी तरफ मृत्युंजय एकटक धानी को देख रहा था और उसके एक्सप्रेशन्स नोटिस कर रहा था। धानी जो सामने की तरफ देख रही थी, उसने एक नज़र मृत्युंजय की तरफ उठाई और उसे भरी आंखों से देखा। मगर अगले ही पल मृत्युंजय ने जो कहा, उसे सुनकर धानी का दिल पूरी तरह से चकनाचूर हो गया।

मृत्युंजय (धानी की तरफ देखकर):

"तुम्हें क्या लगा? मैंने यह तुम्हारे लिए किया था? मैंने तो यहां एंजॉयमेंट करने के लिए बनवाया था ताकि प्रियंका आए और मैं उसके साथ वक्त बिता सकूं। अब प्रियंका नहीं है तो तुम ही सही। वैसे भी मेरे भी शरीर की कुछ ज़रूरत है। हाँ, अपने आप को ज़्यादा भाव मत देने लग जाना... तुम सिर्फ अब मेरी एक ज़रूरत बन चुकी हो… बस जरूरत।"

मृत्युंजय की बात सुनकर धानी को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके दिल को अपने हाथ में लेकर मसल दिया हो। उसके दिल में हूक उठने लगी।

उसकी आंखों में हल्की नमी तो आई, पर अगले ही पल उसने नमी को अपनी आंखों में ही छिपाते हुए फीकी-सी मुस्कान के साथ कहा:

धानी:

"कोई बात नहीं मिस्टर राठौर… ज़रूरत तो ज़रूरत ही सही… मैं आपकी ज़रूरत बनकर भी खुश हूं।"

उसकी बात सुनकर मृत्युंजय की मुट्ठियां कस गईं, उसके जबड़े जकड़ गए। उसने अपने मन में दांत पीसकर सोचा:

मृत्युंजय (मन ही मन):

"चली क्यों नहीं जाती? क्यों इतना दर्द सह रही हो मुझसे? अरे इंसान नहीं हूं मैं, शैतान हूं। एक शैतान से दिल नहीं लगाया जाता, उससे दूर भागा जाता है। क्या तुम्हें अपनी बेइज्जती महसूस नहीं होती?"

मृत्युंजय अब धानी को ही घूरता रहा। तभी धानी मुस्कुराते हुए उसके गाल पर हाथ रखते हुए बोली:

धानी:

"चलिये मिस्टर राठौर, आपको खुश न कर सकी तो क्या हुआ… कम से कम ज़रूरत है तो मैं आपकी पूरी कर दूं।"

इतना कहकर धानी ने उसका हाथ पकड़ा और कांच के कमरे की ओर चलने लगी।

अब मृत्युंजय बुरी तरह से इरिटेट हो चुका था। अगले ही पल उसने हाथ झटका और गुस्से में जाने लगा। तभी धानी ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा:

धानी:

"कहां जा रहे हैं मिस्टर राठौर… ज़रूरत पूरी नहीं करेंगे?"

उसकी बात पर मृत्युंजय फिर से उसका हाथ झटकता है और दांत पीसकर बोला:

मृत्युंजय:

"अपनी बकवास बंद रखो। क्या तुम्हें बेइज्जती महसूस नहीं होती? कितनी आसानी से मेरे साथ चल रही हो? मिस्ट्रेस हो मेरी क्या?"

"मिस्ट्रेस" शब्द सुनकर धानी की आंखों में नमी आ गई। मगर अगले ही पल उसने फीकी-सी मुस्कान देकर कहा:

धानी:

"आप जैसा ठीक समझें… मुझे तो अब दर्द होना ही बंद हो गया है। क्योंकि इश्क कर बैठी हूं… अब क्या करूं? इस दिल पर जोर नहीं चलता। आपके बिना रह नहीं सकती। अरे, आपने छोड़ दिया तो जी नहीं पाऊंगी।"

उसकी बात सुनकर मृत्युंजय का दिल एक पल को धड़कना भूल गया। वही शब्द अब उसके कानों में गूंज रहे थे। धानी उसके सामने खड़ी थी। उसने मृत्युंजय के सीने पर हाथ रखा तो मृत्युंजय होश में आया।

धानी अब उसके बिल्कुल करीब थी। उसने अपनी एड़ियां उठाई और उसके बिल्कुल पास आकर धीमे स्वर में कहा:

धानी:

"आपकी ये मीठी-सी सांसों की खुशबू मुझे पागल कर देती है मिस्टर राठौर। जब आपकी सांसें मेरे होठों को छू जाती हैं तो उनमें आने वाली खुशबू को मेरा दिल करता है मैं अपने अंदर तक समेट लूं।"

इतना कहकर धानी ने मृत्युंजय के होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उसे पैशनेटली किस करने लगी। धानी के मुलायम होंठों का एहसास मृत्युंजय को ऐसा लग रहा था मानो कोई बच्चा लॉलीपॉप चूस रहा हो।

धीरे-धीरे मृत्युंजय के हाथ उसकी कमर पर आ गए। उसकी साड़ी के बीच से झांकती खुली कमर को छूते ही धानी की सांसें गहरी होने लगीं। धानी को कुछ-कुछ अजीब-सा लग रहा था लेकिन उसने किस करना नहीं छोड़ा। मृत्युंजय सिर्फ उसकी किस को महसूस कर रहा था, उसने अब तक धानी को किस बैक नहीं किया था।

लक्सरीयस रिसॉर्ट, ब्लैक डेनमार्क में…

एक 16 साल की लड़की के ऊपर एक शख्स सवार था। वह उसकी टांगों को पूरी तरह फैला कर जोर से थ्रस्ट कर रहा था। लड़की दर्द से चिल्ला रही थी, रो रही थी, मगर उस आदमी पर इसका कोई असर नहीं हो रहा था। वह उसके जिस्म को बेरहमी से नोच रहा था। उसके हाथ उस मासूम लड़की के सीने को बुरी तरह से नोंच रहे थे।

लड़की (चिल्लाते हुए):

"हमें छोड़ दीजिए मालिक… हमें छोड़ दीजिए… हम मर जाएंगे… हमें बहुत दर्द हो रहा है…"

उसकी गिड़गिड़ाहट के बावजूद उस शख्स को कोई तरस नहीं आया। वह शेख दिखने में जितना आकर्षक और हैंडसम था, असलियत में उतना ही दरिंदा था। उसके बेरहमी भरे ‘एक्ट’ से लड़की के प्राइवेट पार्ट से खून बह रहा था।

इसी बीच कमरे में रखे उसके फोन की घंटी बजी। उसने फोन उठाया। दूसरी तरफ से आवाज आई:

फोन से (सहायक):

"मृत्युंजय राठौर इंडिया वापस आ चुका है। और उसे वापस आए दो हफ्ते से ज्यादा हो चुके हैं।"

फोन की बात सुनते ही उस शख्स के चेहरे पर डेविल-सा एक्सप्रेशन आ गया। उसका नाम विजय खत्री था। उसने गुस्से से कांपते हुए कहा:

विजय खत्री:

"तेरा वक्त आ गया है मृत्युंजय राठौर… बहुत जल्द तेरी मौत तेरे सिर पर तांडव करेगी।"

फिर वह अपने असिस्टेंट से बोला:

विजय:

"जरा उसकी कमजोरी की तस्वीर तो भेज… मैं भी तो देखूं।"

इतना कहकर विजय ने फोन काट दिया और अपने चेहरे पर डरावनी मुस्कान लिए बोला:

विजय:

"बर्बाद होने के लिए तैयार हो जा मृत्युंजय… बहुत बदले लेने बाकी हैं तुझसे!"

थोड़ी देर बाद जब उसने तस्वीर देखी तो उसकी आंखों में मदहोशी छा गई। उसने पागलों की तरह हंसते हुए कहा:

विजय (फोन स्क्रीन देखते हुए):

"चीज़ तो है तू… ऐसे ही तूने मृत्युंजय राठौर को पास कर दिया… तुझे चकनाचूर करना ही होगा। बर्बाद होने के लिए तैयार हो जा मृत्युंजय!"

राठौर फार्म हाउस…

मृत्युंजय इस वक्त धानी को देख रहा था जो अभी-अभी नीचे से तैयार होकर दोबारा छत पर आई थी। थोड़ी देर पहले ही धानी ने मृत्युंजय से एक रिक्वेस्ट की थी—

धानी:

"आज मैं आपके लिए तैयार होना चाहती हूं… आपको महसूस करना चाहती हूं… और वो भी पूरी सुहागन की तरह।"

यह सुनकर मृत्युंजय का दिल जोर से धड़क उठा था। वह चाहकर भी धानी को मना नहीं कर पाया। उसने कोई जवाब नहीं दिया, मगर धानी सब समझ गई थी।

इसीलिए वह नीचे जाकर तैयार हुई और फिर से छत पर आई। धानी को देख मृत्युंजय का दिल एक बार फिर करवट लेने लगा। उसका दिल आज जैसे खुद से दगा करने पर उतर आया था।

To be continued…

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