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Heartless mrituejaye

Rathore farmhouse,

DM room,

मृत्युंजय इस वक्त धानी के ऊपर झुका हुआ था। और अभी-अभी मृत्युंजय की आँख का एक कतरा धानी के गालों पर आकर गिरा था जिसे महसूस कर धानी की आँखें हैरत से फैल गई थीं। वह हैरानी से मृत्युंजय की तरफ देख रही थी जिसकी आँखें इस वक्त हद से ज़्यादा लाल थीं। मृत्युंजय गुस्से में काँपता हुआ बोला –

"क्या चाहती हो तुम…"

उसकी बात पर धानी फीका सा मुस्कुराई और उसकी आँखों में देखते हुए बोली –

"आपका इश्क…"

जैसे ही धानी ने यह कहा मृत्युंजय का दिल ज़ोरों से धड़क उठा। उसने धानी की तरफ पीठ की और उसकी तरफ बिना देखे बोला –

"पहले पानी पियो।"

पानी का गिलास टेबल की बेड रेस्ट पर पड़ा था, पर मृत्युंजय अपने हाथों से धानी को पानी पिलाने के लिए तैयार नहीं था, क्योंकि उसका मन था कि अगर वह गिलास उठाकर धानी को पिलाएगा तो वह धानी के आगे झुक जाएगा… और वह धानी के आगे झुकना नहीं चाहता था।

वहीं धानी एक्सप्रेशनलेस होकर बोली –

"मैंने भी आपसे कहा है, जब तक आप मेरा व्रत नहीं खोलेंगे, तब तक मैं अपना व्रत नहीं खोलूँगी।"

धानी की बात पर मृत्युंजय का गुस्सा और भी ज़्यादा बढ़ गया। वह धानी की तरफ पलट कर उसे कुछ कहने को हुआ कि तभी रूम का दरवाज़ा नॉक हुआ। एक सर्वेंट खाना की ट्रॉली लेकर अंदर की तरफ आया और उसे देखकर मृत्युंजय ने सामने टेबल की तरफ इशारा किया तो सर्वेंट ने खाना टेबल पर लगा दिया और अगले ही पल वहाँ से चला गया।

मृत्युंजय ने अब अपनी लाल आँखों से एक बार फिर से धानी की तरफ देखा और उसकी तरफ देखकर गुस्से से काँपते हुए बोला –

"मैंने कहा पानी पियो।"

उसकी बात पर धानी ने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया। जैसे ही धानी ने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमाया मृत्युंजय के हाथों की मुट्ठियाँ कस गईं और उसने आँखों को कसके बंद कर लिया, क्योंकि धानी उसका गुस्सा और भी ज़्यादा बढ़ाए जा रही थी।

मृत्युंजय अब गुस्से से धानी की तरफ देखते हुए बोला –

"I don't care… तुम पानी पियो, नहीं पियो… I don’t care about that. Just get lost! नहीं पीना तो मत पियो, मेरे लिए चाहे भाड़ में जाओ… मुझे फर्क नहीं पड़ता। और तुमने यह व्रत खुद रखा था, मैंने नहीं रखवाया था। क्या सोचकर वैसे तुमने यह व्रत रखा था कि मैं तुम्हारे आगे झुक जाऊँगा? No… Never! कोई भी आज तक मृत्युंजय राठौड़ को नहीं झुका पाया है। और तुम भी कभी नहीं झुका पाओगी। भूल जाओ जो ख्वाब तुमने देखे हैं। तुम जैसी लड़कियों को मैं बहुत अच्छे से जानता हूँ।"

इतना कहते हुए मृत्युंजय कमरे से जाने लगा कि तभी धानी ने उसका हाथ पकड़कर रोक लिया और फीका सा मुस्कुरा कर बोली –

"चलो मेरा व्रत नहीं खोलना… खुद का तो खोल दीजिए, मैं खुलवा देती हूँ।"

धानी की बात सुनकर एक पल के लिए मृत्युंजय के होश उड़ गए क्योंकि यह बात अभी तक किसी को भी नहीं पता थी। यानी कि सुबह से धानी भी मृत्युंजय पर नज़र रख रही थी। मृत्युंजय का दिल अब ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। वह धानी की तरफ पलटा और अपना हाथ छुड़ाते हुए बोला –

"क्या वहम में जी रही हो?"

वहीं धानी अब फीका सा मुस्कुराई और बोली –

"यही कि आप हमसे बहुत बेइंतेहा इश्क करते हैं।"

उसकी बात पर मृत्युंजय अपने चेहरे पर डेविल एक्सप्रेशन लाते हुए बोला –

"अपने सपनों की दुनिया से बाहर आओ Miss Dhaani।"

मृत्युंजय की कर्कश आवाज़ और डेविल एक्सप्रेशन देखकर भी धानी के होंठों पर हल्की सी मुस्कान थी। उसके चेहरे पर वही जिद, वही ठहराव, वही मासूम दीवानगी थी… जो मृत्युंजय को अंदर तक हिला देती थी।

वह उसकी आँखों में बिना पलक झपकाए देखती रही और बेहद धीमे, लेकिन ठोस लहज़े में बोली –

"सपनों में नहीं जी रही मैं, Mr. Rathore… हक़ीक़त यही है कि आप हमसे इश्क करने लगे हैं। बस खुद से मानने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे।"

मृत्युंजय की साँसें अब भारी होने लगी थीं। उसकी आँखों का लाल रंग और भी गहरा हो चुका था। उसने अपने दोनों हाथों से धानी के कंधे पकड़कर उसे हल्का सा झटका दिया –

"चुप रहो… बिल्कुल चुप! तुम जानती नहीं, तुम किससे टकरा रही हो। मैं वो आदमी हूँ जो किसी के आगे झुकना तो छोड़ो… किसी को देखना भी पसंद नहीं करता।"

लेकिन धानी उसकी पकड़ में भी किसी मासूम बच्चे की तरह बिल्कुल सहज थी। उसकी मुस्कान हल्की सी और गहरी हो गई।

"तो फिर मुझे क्यों पास आने देते हैं? क्यों मेरी साँसें आपकी साँसों से टकराते ही आपकी धड़कनें बेकाबू हो जाती हैं? इतना कहते क्यों, जब मैं आपकी आँखों में देखती हूँ तो आपकी रूह तक बेचैन हो जाती है, Mr. Rathore?"

मृत्युंजय ने उसका चेहरा कसकर अपनी ओर खींच लिया। दोनों की नाकें आपस में लगभग छू रही थीं। उसकी आँखें अब खतरनाक हद तक गुस्से और जुनून से भरी थीं। वो धानी की आँखों में देखते हुए अपने मन में सोच रहा था –

"क्योंकि तुम मेरी कमजोरी बन रही हो… और मृत्युंजय राठौड़ कभी भी किसी कमजोरी को ज़िंदा नहीं रहने देता।"

अब मृत्युंजय उसकी तरफ देखकर बोला –

"मेरा इश्क तुम्हारे लिए ख्वाब रहेगा।"

धानी हल्का सा हँस पड़ी, लेकिन उसके हँसने में न डर था, न घबराहट… बस एक सच्चाई छिपी थी।

वह धीमे से फुसफुसाई –

"तो फिर मार दीजिए मुझे… अगर आप मुझे इश्क नहीं देंगे, तो खत्म कर दीजिए मुझे… लेकिन एक बात याद रखिए Mr. Rathore… मेरी मौत भी आपकी ज़िंदगी से मेरा नाम कभी नहीं मिटा पाएगी। आप चाहें जितना झूठ बोलें खुद से… सच यही है कि आप मुझे इश्क कर बैठे हैं… उतना ही जितना मैं आपको।"

मृत्युंजय का दिल अब जैसे सीने को तोड़कर बाहर आने को था। उसने कसकर अपनी आँखें बंद कर लीं। उसका चेहरा इतना पास था कि धानी को उसकी तेज़ साँसें अपने चेहरे पर महसूस हो रही थीं।

अचानक वह बेकाबू होकर धानी का चेहरा अपने हाथों में लेकर उसके बेहद करीब झुक आया। लेकिन होंठों को छूने से ठीक पहले उसने खुद को रोक लिया और दाँत भींचते हुए पीछे हट गया।

"नहीं… मैं अब तुम्हारे करीब नहीं आऊँगा।" वह मन में बोला, "तुम मेरी बेचैनियों का सुकून बन रही हो, जो मैं होने नहीं दे सकता। इसी लिए मुझे तुम्हारा दिल तोड़ना होगा।"

इतना कहते हुए उसने अब धानी की तरफ देखा और बोला –

"तुम जैसी औरतें सिर्फ खेल खेलती हो। लेकिन याद रखना Miss Dhaani… मैं तुम्हारे जाल में कभी नहीं फँसूँगा।"

धानी की आँखें नम हो गईं, लेकिन उसके होंठ अब भी काँपते हुए मुस्कुरा रहे थे। उसने धीरे से कहा –

"अगर यह जाल है, तो इसमें फँसना आपकी किस्मत है Mr. Rathore… और जाइए, आज़मा लीजिए खुद को और मेरे इश्क को। अगर अब आप किसी और के पास गए तो मेरा इश्क झूठा।"

उसके ये शब्द मृत्युंजय की नस-नस में आग की तरह उतर गए। उसने ज़ोर से टेबल पर रखा पानी का गिलास उठाया और धानी के सामने पटक दिया। पानी छलक कर बिस्तर पर गिर पड़ा।

"ठीक है shygirl… तुम जीतना चाहती हो न? तो सुन लो… तुम चाहती हो न कि मैं तुम्हारा व्रत तोड़ूँ?"

इसकी बात पर धानी उसकी तरफ देखती रह गई। पर अगले ही पल जो मृत्युंजय ने कहा, उसे सुन धानी की आँखों से आँसू तो नहीं निकले… लेकिन उसका कलेजा जैसे फटने को हो गया।

मृत्युंजय धानी की तरफ देखकर बोला –

"तुम्हें इसी वक्त divorce papers पर साइन करना होगा। बोलो, मंज़ूर है?"

जैसे ही मृत्युंजय ने यह कहा… धानी का दिल धक सा रह गया।

To be continue....

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