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Feelings

Rathore Villa,

Parking area,

मृत्युंजय की कार राठौर विला के पार्किंग एरिया में आकर रुकी। मृत्युंजय के चेहरे पर इस वक्त परेशानी झलक रही थी। अगले ही पल मृत्युंजय ने कार का दरवाजा खोला और अंदर की तरफ तेज कदमों से बढ़ गया।

अंदर जाते ही मृत्युंजय ने अपनी शर्ट नजरों से चारों तरफ देखा। हाल में इस वक्त सन्नाटा पसरा हुआ था। संस्कृति जो की किचन से बाहर आ रही थी, उनके हाथ में एक थाली थी जिसमें दिया जल रहा था और कुछ करवा चौथ के व्रत का सामान रखा हुआ था।

मृत्युंजय अपडेट कदमों से संस्कृति जी की तरफ बढ़ा और उनके सामने आकर खड़ा हो गया। वही संस्कृति ने मृत्युंजय की तरफ देखकर कहा –

“मृत्यु बेटा, धानी कहां है? हमने तुम्हें कहा था धानी को साथ में लेकर आना।”

संस्कृति जी की बात सुनकर मृत्युंजय का दिमाग अब पूरी तरह से घूम गया था क्योंकि धानी तो सुबह ही ऑफिस से निकल चुकी थी। उसके दिमाग में इस वक्त यही चल रहा था – “धानी तो सुबह ही ऑफिस से निकल चुकी है… अगर धानी घर पर नहीं आई तो फिर धानी गई कहां?” यह सोच-सोच कर मृत्युंजय की सांस गहरी होने लगी थी।

पर तभी दरवाजे से किसी के कदमों की आहट हुई। जैसे ही आहट सुनाई दी, मृत्युंजय और संस्कृति जी ने दरवाजे की ओर देखा तो मृत्युंजय का दिल एक पल के लिए जैसे धक सा रह गया। सामने धानी अभी भी गीले कपड़ों में अंदर की तरफ बिना किसी एक्सप्रेशन के चली आ रही थी।

धानी की आंखों में इस वक्त जैसे जान ही नहीं थी। वही संस्कृति ने धानी का यह हाल देखकर उनका कलेजा जैसे मुंह को आ गया। संस्कृति जी अब जल्दी से धानी की तरफ बढ़ने को हुईं कि तभी मृत्युंजय ने उनका हाथ पकड़ कर रोक दिया। मृत्युंजय की नज़रें अब सिर्फ धानी पर थीं। उसका चेहरा इस वक्त गुस्से से कम रहा था।

वो संस्कृति जी की तरफ देखकर बोला –

“मां, आप आज बीच में नहीं आएंगे।”

संस्कृति बोलीं –

“यह कैसी व्याहत बात है मृत्यु? उसे अभी हमारी जरूरत है। पता नहीं हालातों में वह बाहर से घर पर वापस आई है और तुम… तुम उसे साथ में नहीं लाए?”

मृत्युंजय ने संस्कृति जी की बात का कोई जवाब नहीं दिया और वह बिना किसी एक्सप्रेशन के धानी की तरफ बढ़ गया। वही धानी अभी भी अपने ही ध्यान में अंदर की तरफ आ रही थी। उसकी आंखों में जैसे इस वक्त जान ही नहीं थी।

मृत्युंजय धानी के पास आकर खड़ा हुआ और अगले ही पल उसने कसकर धानी का हाथ पकड़ा और उसे खींचते हुए बाहर की तरफ ले जाने लगा।

वही संस्कृति पीछे से बोलीं –

“मृत्यु, उसका व्रत है, ऐसे मत खींच के ले जाओ… उसने अभी तक कुछ नहीं खाया…”

संस्कृति अपनी बात कहती रह गईं, पर मृत्युंजय ने उनकी एक भी बात ना सुनी और वह धानी को खींचते हुए बाहर ले गया और अपनी गाड़ी में बिठाकर अगले ही पल खुद ड्राइविंग सीट पर बैठकर गाड़ी स्टार्ट की और राठौर विला से निकल गया। वही धानी अभी भी अपनी बेजान आंखों से मृत्युंजय को देख रही थी।

वही मृत्युंजय जो कि अपनी गाड़ी ड्राइव कर रहा था। इस वक्त उसके जबड़े पूरी तरह से भींचे हुए थे। उसकी पकड़ स्टीयरिंग व्हील पर कसती जा रही थी। मृत्युंजय इस वक्त बेहद स्पीड से कार चला रहा था। वही धानी को जैसे इस चीज से कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था, वह बेजान होकर कार के बाहर देख रही थी।

तकरीबन आधे घंटे का सफर मृत्युंजय ने 15 मिनट में ही तय कर लिया।

मृत्युंजय की कार राठौर फार्म हाउस के सामने आकर रुकी। अगले ही पल मृत्युंजय अपनी गाड़ी से बाहर निकला और दूसरी तरफ जाकर उसने दोबारा से धानी का हाथ पकड़ा और खींचते हुए उसे अंदर की तरफ ले गया। धानी तो अपनी ही धुन में उसके साथ चली जा रही थी। उसे तो जैसे कोई होश ही नहीं था कि मृत्युंजय उसके साथ क्या करने वाला है।

मृत्युंजय उसे खींचता हुआ सीधा राठौर फार्म हाउस के अंदर लेकर गया और अपने रूम में ले जाकर उसे बेड पर धक्का दे दिया। और अगले ही पल उसके ऊपर झुकते हुए बोला –

“बहुत शौक था ना व्रत रखने का? अब तुम्हारा व्रत मैं अच्छे से खोलता हूं। तुम सुबह से ऑफिस से बाहर निकली हो और घर पर कब आ रही हो… कहां गई थी तुम?”

इतना कहते हुए मृत्युंजय का शरीर बुरी तरह से कांप रहा था। वही धानी ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया।

मृत्युंजय बोला –

“जवाब दो! मैं तुमसे कुछ पूछ रहा हूं।”

मृत्युंजय के इतना चीखने-चिल्लाने पर भी धानी ने मृत्युंजय को कोई जवाब नहीं दिया। वही मृत्युंजय अब उसके ऊपर पूरी तरह से झुका और उसके बालों को मुट्ठी में भरते हुए, उसके चेहरे के पास अपना चेहरा करते हुए दांत पीसकर बोला –

“मैंने तुमसे कुछ पूछा है… बोलती क्यों नहीं?”

धानी ने अब जाकर मृत्युंजय की तरफ देखा और उसकी आंखों में देखकर बोली –

“जब आपको मेरे जीने या मरने से कोई फर्क नहीं पड़ता तो मैं आपकी बातों का जवाब क्यों दूं? आपने कहा कि मैं मर भी जाऊं तो आपको फर्क नहीं पड़ता… तो आप समझ लीजिए मैं मर गई।”

जैसे ही धानी ने यह बात कही मृत्युंजय का दिल तड़प उठा और अगले ही पल मृत्युंजय ने एक जोरदार तमाचा धानी के गाल पर जड़ दिया।

मृत्युंजय दांत पीसकर बोला –

“अपनी बकवास बंद करो!”

वही धानी उसकी बात पर व्यंग्य से हंसी और बोली –

“सच्चाई, सच्चाई होती है मिस्टर राठौर। मैं लाख अपने दिल को बहला लूं कि कभी तो आप मुझसे प्यार करेंगे, पर ऐसा कभी नहीं हो सकता क्योंकि कहीं ना कहीं आप सच में प्रियंका से प्यार करते हैं… और शायद कभी-कभी लगता है कि मैं ही आप दोनों के बीच में आ गई।”

उसकी बात पर एक पल के लिए मृत्युंजय ने अपनी आंखें बंद कर लीं। और अगले ही पल उसने गहरी सांस लेकर अपनी आंखें खोलीं और बोला –

“यह तो तुमने बिलकुल सही कहा।”

जैसे ही धानी ने यह बात सुनी, अगले ही पल उसका दिल एक बार फिर बुरी तरह से टूट गया। उसकी आंखों में आंसुओं का बांध छूट पड़ा। उसके आंसू गालों पर आने लगे, पर अगले ही पल वह दर्द से और व्यंग्य से हंसी और बोली –

“गलती आपकी नहीं है मिस्टर राठौर… गलती मेरी है। इश्क ही आपसे इतना कर लिया कि खुद भी खुद से दूर हो गई। काश सच में मेरी सांस रुक जाए और मैं मर जाऊं तो कम से कम आपको मेरे से तलाक…”

धानी ने इतना ही कहा था कि मृत्युंजय ने उसके बालों को कसकर पकड़ते हुए बोला –

“जस्ट शटअप! क्यों चुप करूं मैं? आखिर में हर बार आपकी मर्जी क्यों चले? नहीं जीना मुझे इस जिंदगी में… मेरा इश्क मेरे साथ ना हो, वह जिंदगी ही क्या।”

उसकी बात सुनकर मृत्युंजय का दिल जोर से धड़क उठा। उसने जल्दी से धानी की तरफ अपनी पकड़ मजबूत कर दी। ना चाहते हुए भी मृत्युंजय आज अपने जज्बातों को संभाल नहीं पा रहा था। वही धानी जिसको अब चक्कर आने लगे थे क्योंकि कल रात से उसने कुछ भी नहीं खाया था, और ऊपर से आज सुबह का उसने पानी का एक घूंट तक नहीं पिया था।

...

(कुछ देर बाद डॉक्टर के जाने के बाद)

तकरीबन आधे घंटे बाद धानी को होश आया और अगले ही पल उसने चांद की तरफ देखा और घड़ी की तरफ देखा। 8:30 बज चुके थे और चांद भी निकल चुका था यानी की व्रत अपनी सीमा पर था। वही धानी की भी आंखें अब खुलने लगी थीं। मृत्युंजय अपनी लाल आंखों से धानी को देख रहा था।

मृत्युंजय धानी की तरफ देखकर, वही साइड पर रखी एक खाने की ट्रॉली की ओर इशारा करते हुए बोला –

“खाना खाओ।”

वही धानी जिसे अभी-अभी होश आया था, मृत्युंजय की आवाज सुनकर उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ फेर लिया। धानी की इस हरकत पर मृत्युंजय की पकड़ अपने गिलास पर कस गई। हालांकि खाया मृत्युंजय ने भी कुछ नहीं था। मृत्युंजय अब गुस्से से एक बार फिर सर्द आवाज में बोला –

“मैंने कहा खाना खाओ।”

मृत्युंजय की बात पर अब धानी ने एक प्यारी सी मुस्कुराहट के साथ मृत्युंजय की तरफ देखा। उसकी मुस्कुराहट देखकर एक पल के लिए मृत्युंजय का दिल जोर से धक-धक करने लगा, पर अगले ही पल उसने खुद को नॉर्मल किया और धानी को सर्द नजरों से देखते हुए बोला –

“खाना खाओ।”

धानी ने नम आंखों से देखते हुए नाम में सिर हिला दिया।

मृत्युंजय अब गुस्से में बोला –

“I said eat it damn it!”

मृत्युंजय की बात पर फिर से धानी ने अपना चेहरा दूसरी तरफ कर लिया। और अगले ही पल धानी तड़प कर बोली –

“जब तक आप खुद मेरा व्रत नहीं खोलेंगे मैं अन्न का एक दाना नहीं खाऊंगी।”

उसकी बात पर मृत्युंजय के हाथ में जो गिलास पानी का पड़ा था, वह धानी को देने के लिए उठाया, ताकि वह कुछ खा ले। पर धानी कुछ खाने को तैयार ही नहीं थी।

धानी की नजर भी खिड़की से चांद की तरफ ही थी। वह एक नजर कभी चांद को देखती तो कभी मृत्युंजय को।

वही मृत्युंजय अब अपनी जगह से खड़ा होकर गिलास को वहीं जमीन पर पटक दिया और चिल्ला कर बोला –

“खाना खाओ! मैं तुम्हें कुछ भी खिलाने वाला नहीं हूं। ना ही मैं तुम्हारा व्रत खोलने वाला हूं। मैंने तुम्हें पहले ही कहा था, मैं इन सब चीजों पर विश्वास नहीं करता।”

वही धानी अब अपनी जगह से उठने को हुई कि तभी उसे दोबारा से चक्कर आने लगे और वह वहीं पर बैठ गई। जिसे देखकर मृत्युंजय का दिल धक सा रह गया और अगले ही पल उसके पास आकर उसके ऊपर झुकते हुए बोला –

“सुनाई नहीं देता? खाना खाओ।”

धानी बड़े ही प्यार से उसकी आंखों में देखते हुए बोली –

“आप खिला दीजिए ना…”

धानी की बात पर मृत्युंजय की आंखें इस वक्त हद से ज्यादा लाल हो गई थीं। देखते ही देखते मृत्युंजय की आंखों से एक कतरा

धानी के गाल पर गिर गया। जिसे अपने गालों पर महसूस कर धानी की आंखें हैरत से फैल गईं।

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To be continued…

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