
Rathore Industries,,
Mrityunjay's Cabin,,
मृत्युंजय इस वक्त धानी के ऊपर झुका हुआ था। दोनों की सांसें आपस में टकरा रही थीं और अभी-अभी मृत्युंजय जैन ने जो कहा था उसे सुनकर धानी का दिल मानो धड़कन ही भूल गया था। मृत्युंजय ने अभी-अभी धानी को सर्द लहजे में कहा था – "क्या चाहती हो? किसी पर डोरी डालना चाहती हो? या चाहती हो कि वो लड़का तुम्हारी ओर अट्रैक्ट हो? हां, अब तो तलाक का नाम आ ही गया है, तो अपने लिए कोई न कोई तो ढूंढोगी ना।"
उसकी बात सुनकर धानी की आंखों में पानी लबालब बरसने लगा। उसे अपने दिल में कुछ टूटा हुआ महसूस हो रहा था। पर अगले ही पल धानी अपने चेहरे पर दर्द भरी मुस्कराहट लेकर बोली – "बिल्कुल सही कह रहे हैं आप। अब आप तो हमें छोड़ देंगे, सारी उम्र थोड़ी और अकेले गुजरेंगे। इसलिए हमें सहारा तो चाहिए होगा।" धानी की बात से उसकी तकलीफ साफ़ झलक रही थी। वही मृत्युंजय, जो पहले ही आग में झुलस रहा था, जैसे किसी ने उसे आग में घी का काम कर दिया हो। उसके हाथों की मुट्ठियां कस गईं।
वह गुस्से में गरजते हुए बोला – "Just shut up god damn it!"
तभी धानी उसकी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली – "क्यों? क्यों करूं चुप? अभी आप भी तो यही बोल रहे थे, वही बात मैंने बोल दी तो क्या हर्ष हो गया? हां, ढूंढ रहे हैं अपने लिए कोई नया, जो हमारी कद्र करे, हमसे प्यार करे। वह बात अलग है, इश्क तो आपसे ही किया है और सारी उम्र रहेगा। यह जो तलब हमारे इश्क में आपके लिए जगी है ना, वह शायद ही कभी खत्म होगी।"
धानी अभी बोल ही रही थी कि तभी मृत्युंजय ने उसके सिर के पीछे अपना हाथ रखा और अगले ही पल उसके बालों को अपनी मुट्ठी में भरकर दांत पीसते हुए बोला –
"I said shut up! अभी तुम्हारा तलाक मुझसे हुआ नहीं है जो इतनी हवा में उड़ रही हो!"
वहीं धानी आंखों में नमी लिए और व्यंग्य भरी मुस्कराहट के साथ बोली – "और यह तलाक हम होने भी नहीं देंगे। इश्क आपसे किया है तो अंत तक आप तक ही रहेगा।"
उसकी बात सुनकर मृत्युंजय का दिल एक पल के लिए धड़क उठा। अगले ही पल मृत्युंजय का हाथ उसके बालों पर से ढीला हो गया और वह पीछे की तरफ होने लगा कि तभी धानी उसके सीने से जा लगी।
मृत्युंजय की आंखें बड़ी हो गईं और उसका दिल जोर-जोर से धक-धक करने लगा। मृत्युंजय की धड़कनों ने इस वक्त इतनी तेज़ रफ्तार पकड़ ली थी कि उसकी धड़कनों की आवाज़ धानी भी साफ़ सुन रही थी। जिसे सुनकर एक पल के लिए धानी के दिल में सुकून सा उतर रहा था।
धानी अब तड़प कर बोली – "क्यों कर रहे हैं ऐसा खुद के साथ? कहीं न कहीं हम भी यह चीज़ महसूस कर रहे हैं कि आप भी हमसे इश्क करने लगे हैं।"
उसकी बात पर एक पल के लिए मृत्युंजय ने अपनी आंखों को कसकर बंद किया और अगले ही पल गहरी सांस भरकर आंखें खोलते हुए दांत पीसकर बोला – "अपनी बकवास बंद रखो और मुझसे पीछे रहो!"
वहीं धानी अब थोड़ा पीछे होकर उसकी आंखों में देखकर बोली – "क्या सच में आपको हमसे इश्क नहीं?"
मृत्युंजय, जो धानी की आंखों में देख रहा था, उसने अपनी नज़रें चुराते हुए कहा – "बिल्कुल भी नहीं।"
“तो फिर क्यों जब हमारा नीचे एक्सीडेंट होने वाला था, तो आपकी सांसें और हालत अटक गई थीं?”
जैसे ही मृत्युंजय ने धानी की बात सुनी, एक पल के लिए उसकी आंखें हैरत से फैल गईं कि धानी ने उसका रिएक्शन कैसे देख लिया जबकि वह तो खुद भी होश में नहीं थी।
कभी धानी के दिमाग में वह पल गूंजा जब वह लॉबी से लिफ्ट में आ रही थी। तब उसके सामने जो एलईडी पर सीसीटीवी फुटेज चल रही थी, उसमें कुछ देर पहले की हुई दुर्घटना भी चल रही थी। जब एक गाड़ी धानी को उड़ा देने वाली थी, तब मृत्युंजय का रिएक्शन देखकर एक पल के लिए धानी की नजर एलईडी पर टिक गई थी।
उसे देखकर एक पल के लिए धानी की आंखों में नमी छा गई थी। पर अगले ही पल उसने अपने आप को संभाला और लिफ्ट में चली गई।
वहीं मृत्युंजय अभी भी उसके सामने जमा खड़ा था कि आखिर धानी को उसके रिएक्शन के बारे में कैसे पता चला। पर अगले ही पल मृत्युंजय होश में आते हुए धानी की तरफ देखकर बोला – "गलतफहमी में हो तुम कि मुझे तुम्हारी फिक्र है। तुम मर भी जाओ ना, मुझे तब भी तुमसे कोई फर्क नहीं पड़ता।"
मृत्युंजय की बात पर एक पल के लिए धानी का दिल जैसे तड़प उठा। और अगले ही पल उसकी आंखों में आंसू झर-झर बहने लगे। तड़पते हुए बोली – "मेरी आंखों में देखकर यह बात कहिए कि आपको मेरे मरने-जीने से कोई फर्क नहीं पड़ता।"
वहीं मृत्युंजय ने एक पल धानी की आंखों में देखा और अगले ही पल उसकी आंखों से नजर हटाते हुए बोला – "नहीं पड़ता। तुम जाओ, जाकर किसी गाड़ी के नीचे आ जाओ। मुझे तब भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा।"
मृत्युंजय की बात पर धानी का दिल जैसे धड़कन ही भूल गया। वहीं मृत्युंजय की अब पीठ धानी की तरफ थी और उसने अपनी आंखों को कसकर बंद कर लिया और हाथों की मुट्ठियां भींच ली थीं।
वहीं धानी जैसे उसके अंदर सब कुछ टूट गया हो। एक उम्मीद थी, वह भी टूट चुकी थी। उसने अब बेजान होकर अपने कदम केबिन से बाहर बढ़ा दिए। जिंदा लाश की तरह केबिन से बाहर जाकर दोबारा से लिफ्ट में चली गई और नीचे की तरफ आ गई। वहीं मृत्युंजय अभी भी अपनी जगह पर खड़ा था और धानी से कुछ कहने के लिए पलटा। तभी पीछे देखा कि धानी तो पीछे थी ही नहीं। अगले ही पल उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसकी सांस रोक दी हो क्योंकि धानी अब वहां से जा चुकी थी।
मुंबई का मौसम अब खराब होता जा रहा था।
वहीं धानी गुमसुम सी सड़कों पर चली जा रही थी। उसकी आंखों के सामने मृत्युंजय का चेहरा घूम रहा था और उसके दिमाग में बार-बार मृत्युंजय की कही बातें गूंज रही थीं – कि उसे धानी के मरने या जीने से कोई फर्क नहीं पड़ता। यह सोचकर ही धानी का दिल हर बढ़ते पल के साथ जैसे टूट रहा था। धानी बिना किसी भाव के सड़क के बीचो-बीच चल रही थी। ऊपर से मुंबई का मौसम पूरी तरह बिगड़ चुका था। धीरे-धीरे बारिश होने लगी थी।
ऊपर से धानी ने सुबह से कुछ खाया भी नहीं था क्योंकि आज उसका व्रत था। धीरे-धीरे बारिश बढ़ने लगी, पर धानी को इस चीज़ से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।
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वहीं दूसरी तरफ…
मृत्युंजय ने जैसे ही देखा कि धानी केबिन में नहीं है, उसने तुरंत सीसीटीवी फुटेज देखा। सीसीटीवी फुटेज देखकर उसकी आंखें सर्द हो गईं, क्योंकि धानी इंडस्ट्री से बाहर निकल चुकी थी। वह गुस्से में दांत पीसकर बोला – "जाती है तो जाए, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।"
इतना कहकर उसने अब केबिन में अपना काम करना शुरू कर दिया। पर बार-बार उसे धानी का ख्याल ही सता रहा था। बार-बार उसकी आंखों के सामने धानी का चेहरा घूम रहा था।
ऐसे ही सारा दिन बीत गया। अब तक बारिश भी रुक चुकी थी और बादल भी छंट चुके थे। शाम के 7 बज चुके थे। वहीं मृत्युंजय अभी भी अपने केबिन में काम कर रहा था। काम करते हुए उसने अपने दिमाग से धानी का ख्याल निकालने की कोशिश की थी।
तभी उसके फोन पर संस्कृति जी का फोन आया। संस्कृति जी का फोन आते ही उसने पूरी तरह कॉल को इग्नोर कर दिया क्योंकि वह कहीं न कहीं जानता था कि आज धानी का व्रत है और संस्कृति व्रत खुलवाने के लिए ही मृत्युंजय को फोन कर रही थी। ऐसे ही संस्कृति जी ने कई बार मृत्युंजय को फोन किया, पर मृत्युंजय फोन उठाने को तैयार ही नहीं था।
पर तकरीबन 15–20 मिनट बाद अब मृत्युंजय के फोन पर कश्यप जी का फोन आया। जैसे ही मृत्युंजय के फोन पर कश्यप जी का फोन आया तो मृत्युंजय के चेहरे पर अजीब से एक्सप्रेशन आ गए। वह दांत पीसकर बोला – "लगता है आज ये लोग मुझे जीने नहीं देंगे।"
इतना कहकर उसने कश्यप जी का फोन उठाया और आगे से जो बात कश्यप जी ने कही, उसे सुनते ही मृत्युंजय के होश उड़ गए।
और अगले ही पल मृत्युंजय अपने केबिन से
निकलकर भागा और गाड़ी लेकर बाहर की तरफ निकल गया।
To be continue....
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