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Pari ka wapis ana

Jet Scene ✦

परी जैसे ही जेट में चढ़ी, उसकी सांसें मानो वहीं अटक गईं। उसकी नज़र जैसे सामने गई और अगले ही पल उसकी आंखें चौड़ी हो गईं। खिड़की के पास बैठा वही चेहरा… अखिल।

उसका दिल इस वक्त इतनी तेज़ी से धड़क रहा था कि मानो उसकी छाती से बाहर निकल जाएगा। उसकी आंखें हल्की लाल थीं, होंठों पर हल्की थरथराहट थी, और उंगलियों की मुट्ठियां आपस में कस चुकी थीं।

अखिल बाहर खिड़की से झांक रहा था, पर जैसे ही उसने हल्का सा सिर घुमाया—उसकी नज़रें सीधे परी से टकराईं।

परी ने तुरंत अपनी नज़रें दूसरी तरफ फेर लीं और तेज़ क़दमों से दूसरी सीट की ओर बढ़ गई। पर उसके जाने से पहले ही, अखिल ने उसका हाथ थाम लिया।

परी का पूरा बदन कांप गया। उसका दिल जैसे किसी ने ज़ोर से भींच लिया हो। पर उसने पलटकर अखिल की तरफ नहीं देखा, बस धीमे, टूटती आवाज़ में बोली—

“मैंने कहा था ना… अब तुम आज़ाद हो। क्यों आए हो मेरे पीछे? क्यों…?”

अखिल ने उसके हाथ को और कसकर पकड़ लिया, उसकी आवाज़ गहरी और रूखी सी थी पर उसमें दर्द साफ़ छलक रहा था—

“तुम्हें सच में लगा… firefly… कि मैं तुम्हें अकेला छोड़ दूँगा? तुम मेरी सांस हो… और कोई अपनी सांस को छोड़कर कैसे जी सकता है?”

परी की आंखें भीगने लगीं, पर उसने खुद को कड़ा रखा। उसकी आवाज़ धीमी पर सख़्त थी—

“मैं तुम्हें अपने साथ बाँधकर नहीं रखना चाहती, अखिल।

मैं तुम्हारे साथ ज़बरदस्ती… या कोई कैद नहीं चाहती।”

अखिल हल्के से हंसा—एक कड़वी हंसी।

“ये बातें तुम्हें पहले सोचनी चाहिए थीं, परी।”

परी का दिल एक पल के लिए रुक सा गया। उसकी उंगलियां कांपीं और होंठ सूखने लगे। और अगले ही पल अखिल ने उसका हाथ अपनी ओर खींचा।

परी उसका संतुलन खो बैठी और सीधा उसकी गोद में आ गिरी।

उसकी आंखें आग सी लाल हो उठीं।

“ये… क्या बदतमीज़ी है?” वह तड़पकर बोली।

अखिल ने उसके चेहरे के बेहद क़रीब आते हुए फुसफुसाया—

“अब तो ऐसा ही चलेगा। बदतमीज़ी ही सही…”

और बिना उसे एक पल का भी वक़्त दिए, अखिल ने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए।

परी की आंखें चौड़ी रह गईं। उसकी सांसें रुक सी गईं।

पर अगले ही पल उसके हाथ अखिल के कंधों पर कस गए।

उसके होठों पर अखिल के होंठों की गर्माहट… उसके अंदर एक सुकून सा भर रही थी। जैसे किसी ने उसकी आधी रातों की तड़प, उसकी सारी बेचैनियां, सब एक ही पल में मिटा दी हों।

अखिल उसे और गहराई से चूमने लगा, और परी का बदन उसके आगोश में और सिमटने लगा।

उसके दिल की धड़कन इतनी तेज़ हो गई कि अखिल तक महसूस कर सकता था।

परी के अंदर एक खामोश जंग चल रही थी। एक तरफ उसका गुस्सा, उसका अहंकार… और दूसरी तरफ वो दर्द और प्यार जो उसे चैन नहीं लेने दे रहा था।

उन दोनों का किस चलता रहा…

कुछ पल… कुछ मिनट… पर दोनों के लिए जैसे वक़्त थम गया हो।

परी की आंखें कब बंद हो गईं उसे खुद भी नहीं पता चला।

उसके गालों पर आँसू लुढ़क कर अखिल के होंठों से मिले।

अखिल ने किस रोककर उसकी आंखों की नमी देखी, फिर बेहद नरमी से उसके गाल पर होंठ रखकर बोला—

“firefly… अब तो मान लो… हम एक-दूसरे से दूर रह ही नहीं सकते।”

परी ने आंखें खोलकर उसे देखा। उसकी आंखों में प्यार था, तड़प थी, गुस्सा था और डर भी।

वह धीरे से फुसफुसाई—

“तुम्हें खोने से अच्छा है… मैं खुद को खो दूँ।”

अखिल ने तुरंत उसके होंठों को फिर से कैद कर लिया।

ये किस पिछले हर किस से गहरा था—प्यार से, दर्द से, बेक़रारी से भरा।

दोनों जैसे एक-दूसरे में खो गए।

काफी देर… तकरीबन बीस-पच्चीस मिनट… दोनों इसी जुनून और मोहब्बत में डूबे रहे।

और फिर—

परी ने अपनी आंखें धीरे-धीरे खोलीं।

उसका दिल धक से रह गया।

उसके सामने… अखिल नहीं था।

वह अब भी अकेली खड़ी थी।

ना अखिल की आंखें, ना उसका स्पर्श… बस उसकी तन्हाई।

वह समझ गई… ये सब एक ख्वाब था।

एक ख्वाब… जो उसकी आंखें बंद होते ही टूट गया।

उसका कलेजा जैसे मुंह को आ गया।

उसके होंठ अब भी कांप रहे थे, मा

नो अखिल का स्वाद उनमें जिंदा हो।

उसकी आंखें लाल थीं… पर उसने रोई नहीं।

हयात होटल के शाही कमरे में, दिन की धूप पर्दों से छनकर भीतर आ रही थी। कमरे में हल्की-सी ठंडक थी, पर अखिल के भीतर का आलम गर्म और बेचैन था।

वह खिड़की के पास खड़ा था, शर्ट के ऊपरी बटन खुले हुए थे और हाथ में कॉफी का कप।

पर कॉफी कब से ठंडी हो चुकी थी, क्योंकि उसकी आंखें बार-बार कहीं और अटक रही थीं—परी पर।

उसका दिमाग चिल्ला रहा था—

“नफ़रत करनी है उससे… उस औरत से जिसने तुम्हें पैसे से खरीदा, धमकी दी, मजबूर किया।

वो तुम्हारे साथ कोई मोहब्बत का रिश्ता नहीं चाहती, बस ज़िद और कंट्रोल चाहती है।”

पर उसी वक्त उसका दिल फुसफुसाता—

“अगर सच में नफ़रत है तो क्यों उसकी याद आते ही सांसें तेज़ हो जाती हैं? क्यों हर चीज़ में उसकी झलक दिखाई देती है? क्यों उसका नाम सुनते ही सबकुछ थम जाता है?”

अखिल ने झुंझलाकर कप टेबल पर रख दिया और अपने बालों में हाथ फिराया।

उसके होंठों से हल्की-सी बड़बड़ाहट निकली—

“ये कैसा पागलपन है… नफरत भी करूँ, तो भी उसका चेहरा सामने आ जाता है। ये एहसास… मुझे खुद से ही डराने लगे हैं।”

उसकी नज़र टेबल पर पड़ी—वहाँ वही कॉन्ट्रैक्ट मैरिज का पेपर रखा था जिस पर परी ने उसके साइन करवाए थे।

वो पेपर देखकर उसकी आंखें ठंडी हो गईं, और उसने धीरे से कहा—

“तुमने मुझे खरीदा था परी… मजबूरी बनाई थी मेरी ज़िंदगी को। और शायद इसलिए ही मैं तुम्हें कभी माफ़ नहीं कर पाऊँगा।”

वह दो कदम पीछे हटा, पर अगले ही पल उसकी उंगलियां उस पेपर को छू गईं।

उसने मुट्ठी भींचते हुए पेपर को सीने से लगाया और खुद से फुसफुसाया—

“लेकिन फिर भी… मैं तुमसे दूर क्यों नहीं जा पा रहा? क्यों ये दिल तुम्हें छोड़ने की जगह और ज़्यादा तुम्हारी तरफ खिंच रहा है…?”

उसकी सांसें भारी हो गईं।

वह खुद को आईने में देखने लगा—चेहरे पर गुस्सा था, आंखों में बेचैनी और कहीं बहुत गहरे… प्यार की हल्की चमक।

वह धीमी आवाज़ में बोला—

“शायद मैं खुद से ही हार रहा हूँ… और तुमसे

जीतने की कोशिश कर रहा हूँ।”

अखिल आईने के सामने खड़ा था।

उसकी आंखों में थकान थी, पर चेहरे पर वही कड़कपन… जो वो हर वक़्त दिखाता था।

तभी अचानक दरवाज़े पर दस्तक हुई।

उसकी भौहें चढ़ गईं—

“इस वक़्त कौन…?”

उसने दरवाज़ा खोला—और सामने परी खड़ी थी।

दिन की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी, और अखिल के लिए जैसे पूरा कमरा एक पल को उजाले से भर गया।

अखिल का दिल जोर से धड़क उठा......

To be continue.......

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