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Ananya ki halat

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Shekhawat Palace,

Ananya's room,

अभी-अभी दिव्यांश ने अनन्या के कमरे का दरवाजा खोला था और सामने का नजारा देखकर उसके होश उड़ गए थे। क्योंकि अनन्या इस वक्त पूरी तरह से निढाल बेड पर लेटी हुई थी और उसके आसपास कोई भी नहीं था।

अनन्या की हालत ऐसी थी कि ना तो वह कुछ बोल पा रही थी, उसकी सिर्फ आंखें खुली थीं और आंखों से लबालब आंसू गिरे जा रहे थे। अनन्या का चेहरा देखकर दिव्यांश का दिल एक पल के लिए धक सा रह गया।

क्योंकि अनन्या की हालत इस वक्त बेहद खराब थी। उसके पूरे जिस्म पर नीले निशान पड़े हुए थे और चेहरे पर भी होठों के पास चोट के निशान थे। यह देखकर दिव्यांश अंदर तक कांप उठा। उसका दिल जैसे धड़कने से इनकार कर रहा था।

वह धीरे-धीरे अनन्या की तरफ बढ़ने लगा। अनन्या एकटक सीलिंग को देख रही थी, बेजान सा चेहरा और आंखों से बहते आंसू जैसे रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। दिव्यांश जल्दी से उसके पास आया और अगले ही पल उसे ब्लैंकेट से कवर करते हुए, उसके चेहरे को अपने हाथों में थामकर उसकी आंखों में देखते हुए बोला—

"ये उसी का काम है ना...?"

दिव्यांश के मुंह से रवि का नाम सुनकर अनन्या ने अपनी आंखें कसकर बंद कर लीं और अगले ही पल वह फूट-फूटकर रोने लगी।

बेचारी अभी हिल तक नहीं पा रही थी क्योंकि सुबह ही अनन्या होश में आई थी। नौ महीने के कोमा के दौरान शरीर बिल्कुल जड़ हो गया था, इसीलिए अब उठना तो दूर, हिलना तक उसके लिए नामुमकिन हो गया था।

अनन्या को इस तरह रोते देख दिव्यांश सारी बात समझ गया और अब उसके चेहरे पर गुस्सा उतर आया। उसका चेहरा गुस्से से कांपने लगा। दांत पीसते हुए उसने कहा—

"मैं तुम्हें छोड़ूंगा नहीं... रवि खत्री...!"

इतना कहकर वह बाहर जाने के लिए कदम बढ़ाने ही वाला था कि अचानक अनन्या का ख्याल आते ही उसके पैर वहीं थम गए।

उसने पलटकर अनन्या की तरफ देखा। उसकी आंखें अब भी सीलिंग पर टिकी हुई थीं और उनमें जान नाम की कोई चीज़ नहीं थी। सिर्फ दर्द और तड़प भरे आंसू... अनन्या को इस हालत में देखकर दिव्यांश का दिल बुरी तरह से तड़प उठा। उसकी भी आंखें नम हो गईं।

वह तुरंत अनन्या की ओर बढ़ा और ब्लैंकेट समेत उसे अपनी गोद में उठा लिया। अनन्या को लेकर वह बाथरूम में गया।

अंदर जाकर उसने अनन्या को अपनी गोद में लिए ही बाथटब में लिटा दिया। इस वक्त बाथटब बिल्कुल खाली था। दिव्यांश ने नल खोल दिया और धीरे-धीरे उसमें गर्म पानी भरने लगा।

जैसे-जैसे पानी भरता जा रहा था, अनन्या को अपने बदन पर हल्का-सा सुकून महसूस हो रहा था। मगर यह सुकून उसके दिल का दर्द कम नहीं कर पा रहा था। उसकी आंखों से अब भी आंसू बह रहे थे।

दिव्यांश चुपचाप उसकी आंखों को देख रहा था। अनन्या का हर आंसू उसके दिल को जैसे कुचल रहा था। उसे अपने दिल में एक अजीब-सी टीस महसूस हो रही थी।

वह बाथटब के पास बैठ गया और धीरे से अनन्या की ब्लैंकेट उसके बदन से अलग करने लगा। तभी अनन्या ने उसका हाथ पकड़ लिया।

जैसे ही अनन्या ने दिव्यांश का हाथ पकड़ा, दोनों की नज़रें आपस में टकराईं। अनन्या की सुर्ख लाल आंखें जब दिव्यांश से टकराईं, तो एक पल के लिए दिव्यांश को लगा कि उसके अंदर कुछ टूट गया हो।

अनन्या ने अपनी भारी आवाज़ में कहा—

"दूर रहो... मुझसे...!"

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वहीं दूसरी तरफ,

City Hospital,

AS ने अपनी बेटी को उठाया हुआ था और पास ही हरजीत जी मुंह फुलाए एक तरफ बैठी थीं, क्योंकि AS उन्हें अपनी प्रिंसेस को पकड़ने की इजाज़त नहीं दे रहा था।

AS चाहता था कि उसके अलावा कोई भी उसकी प्रिंसेस को हाथ ना लगाए।

अनंत जी यह सब देखकर मन ही मन बहुत खुश थे। काजल जो बेड पर लेटी थी, वह भी यह सब देख रही थी और उसके चेहरे पर प्यारी-सी मुस्कुराहट तैर गई थी।

वहीं आमिर भी पास ही खड़ा था। सबको देखकर वह बेहद खुश था। जहाँ घर में इतना दुख था, वहीं AS और काजल की बेटी ने सबके दिलों में प्यार की एक उम्मीद जगा दी थी।

तभी पीछे से एक आवाज़ आई—

"हमें नहीं दोगे, अरुण बेटा?"

AS ने जैसे ही यह आवाज़ सुनी, वह तुरंत पहचान गया। उसके चेहरे पर एक प्यारी-सी मुस्कुराहट तैर गई। यह कोई और नहीं बल्कि शीला जी थीं, जिन्हें अनंत जी ने खबर कर दी थी कि काजल की बेटी हुई है। उनके साथ सरगम भी आई थी।

वहीं पास खड़े आमिर की नज़र जब सरगम से मिली, उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। सरगम ने भी नज़रें झुका लीं।

AS ने एक नज़र काजल की तरफ देखा। काजल ने अपनी पलकों से इशारा किया, तो AS अपनी जगह से उठा और अपनी बेटी को जाकर शीला जी की गोद में दे दिया।

यह देखकर हरजीत जी मुंह बनाते हुए बोलीं—

"मेरी गोद में क्या कांटे लगे हुए थे?"

उनकी बात सुनकर सब हंसने लगे।

AS ने बड़े एटीट्यूड से कहा—

"अपनी बेटी को बहुत टच कर लिया। लेकिन अब यह मेरी बेटी है... इसको हाथ लगाना मेरी मर्जी से होगा, आपकी मर्जी से नहीं।"

AS की बात सुनकर हरजीत जी ने आंखें तरेरते हुए कहा—

"तू मेरे से कूट मत खा लिया...!"

यह सुनकर सबकी हंसी छूट गई। AS को भी हंसी आ रही थी, लेकिन उसने खुद को कंट्रोल करते हुए कहा—

"कूट लीजिए... आपका ही बेटा हूं।"

AS की बात सुनकर अब हरजीत जी भी हंस पड़ीं।

"जा-जा... बड़ा आया!"

उन सबकी जुगलबंदी चल ही रही थी कि तभी AS ने आमिर को इशारा किया। आमिर ने हल्का सा सिर हिला दिया।

AS अब काजल के पास आया और उसके माथे पर किस करते हुए बोला—

"रैबिट, मैं आता हूं... मुझे एक ज़रूरी काम है।"

AS की बात पर काजल ने पलके झुका लीं और प्यार से बोली—

"जल्दी आइएगा..."

AS उसके कान के पास झुककर बोला—

"तुम कहो तो जाता ही नहीं हूं।"

AS की बात सुनकर काजल का चेहरा लाल पड़ गया। उसे लाल होते देख AS मुस्कुरा उठा। उसने एक बार फिर प्यार से काजल के माथे पर किस किया और दरवाजे की तरफ बढ़ गया।

कुछ ही देर में AS हॉस्पिटल से निकल चुका था।

इस वक्त गाड़ी में AS के साथ आमिर भी बैठा था। AS का चेहरा बेहद शांत था, लेकिन उसकी आंखें लाल हो चुकी थीं।

तकरीबन डेढ़ घंटे बाद उनकी गाड़ी Fire Villa के आगे आकर रुकी।

AS तेजी से गाड़ी से उतरा और विला के अंदर चला गया।

अंदर जाते ही उसने देखा—एक इंसान को रस्सी से बांधा हुआ था। उसके गले में फंदा लटका हुआ था और वह पूरी तरह से तड़प रहा था...

To be continued...

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